Sunday, April 29, 2012

जय सचिन तेंदुलकर


जय जय भारत, जय सचिन तेंदुलकर
जय क्रिकेट क्रीडा के अजेय  धुरंधर

राष्ट्र धरोहर, आदर्श व्यक्तित्व राशि
हर सांस है जिनकी, रनों की प्यासी

अद्भुत मोहक शैली, दर्शनीय बल्लेबाजी
दुर्लभ तकनीकें भी है जिनकी दासी

कीर्तिमानों के धनी, खेल में धेर्यवान
उनको सुलभ सारे अविजित कीर्तिमान

हर विशेषज्ञ, विपक्षी द्वारा सम्माननीय
बेदाग़ अमिट छवि, हुनर अविश्वश्नीय

स्ट्रेट ड्राइव, स्कूप, फ्लिक और पेडल स्वीप
मिलकर बनते उनके आक्रमण की नींव

लेग्ब्रेक, ओफ्फ्ब्रेक, गूगली भी इनकी दुरुस्त
प्रेरणा स्रोत्र सबके, क्षेत्ररक्षण में भी है चुस्त

पद्म श्री, अर्जुन पुरस्कार और पद्म विभूषण
इनके ताज में जड़ा राजीव गाँधी खेल रत्न

अपने समर्पण से देते आलोचकों के दावे चीर
हजारों बाधाओं को पार कर बन गये शतकवीर

क्रिकेट के बेताज शहंशाह, हिंदुस्तान की शान
चाहने वाले करोड़ों दिल उन्हें कहते हैं "भगवान्"

Thursday, April 26, 2012

"हुस्न" है वो...


अमियाँ के बागीचों में, जो सुरीली कोयल गाती है
मेरे घर के ठीक  सामने, एक नदी जो खिलखिलाती है
सुबह सवेरे आँगन में, मीठी सी धुप जो आती है
हर एक हसीं ये चीज़  मुझे, अब उसकी याद दिलाती है

सावन का दिल रिझाने को, ज्यूँ पुरवाई इठलाती है
कमसिन लहरें ज्यूँ सागर की, बाहों में बल खाती है
चांदनी गोद में सर रख कर ज्यूँ रात कोई इतराती है
मेरे सपनों में वो त्यूं ही, अपना दामन लहराती है 

रंगरेज़ कुदरत खुद उसकी, रंगत को देख चकराती है
खुदा भी है आशिक उसका, जिस अदा से वो मुस्काती है
एक धीमी सी आहट उसकी, पत्थर को मोम बनाती है
हया दबा होठों के तले, वो पानी में आग लगाती है

भंवरों को कर देती पागल, फूलों को जो महकाती है
वो जादूगरनी है कौन भला, वो कौन देश से आती है
हर शाम मुंडेरों पे बैठी दो सुन्दर चिड़ियाएं बतियाती है
जो पूंछो उनसे "हुस्न" है क्या, उसका ही नाम बताती है

Wednesday, April 11, 2012

तू ही तू ...

ओ हंसीं जानशीं, ओ मेरी प्यारी परी
कर दीवाना मुझे, तू कहाँ छुप गयी
वो तेरे साथ मेरी क्षणिक मुलाकात
तेरी यादें जेहन में, बसा के गयी ।

मेरे ख्वाबों में जब भी, तू आये नज़र 
बाहें बेताब हों, जाती हैं इस कदर 
चाहूँ बस रहना तेरे ही आगोश में 
तेरी खुशबु का जाने, ये कैसा असर ।।

तू मेरी रूह में, इस तरह घुल गयी 
मेरी हर सांस से, जैसे लिपटी हो तू 
जब भी सोचूं तुझे जाने होता है क्या 
हर जगह, हर तरफ, होती है तू ही तू ।

स्वप्न मंडप की मेरे, दुल्हन तू ही है 
तू ही मेरी ज़मीन है, गगन तू ही है
तू ही मेरा खुदा और खुदा की कसम
मेरी रानी तो अब, हर जनम तू ही है ।।

Tuesday, April 10, 2012

मेरे "दो शब्दों" के "तुम" दो जवाब


मेरे "दो शब्दों" के "तुम" दो जवाब,
हर मुद्दे पे तुम्हारे विचार भी "दो"!!

हर सल्तनत के क्यूँ "सौ" नवाब ?
एक दुनिया में संसार क्यूँ "दो" ?

"दो कदम" भर साथ तो "सौ" कदम चलें
दोराहों पे भी कोई किसीका साथ तो दो |

"दो दो हाथ" तो करते तत्परता से सब
किसी डूबते को भी कोई एक हाथ तो दो |

दिन में जिनके चापलूस रहे "दो" होंठ
रात भर उन्ही पे बरसे गाली "सौ"!!

सर झुका न कभी इबादत में जिनकी,
उनके लिए भी कभी,एक हाथ से ताली "दो"!!

"सौ" बरस के रिश्ते यहाँ "दो" पल बस चलते
कहीं "दो" अंखियों के दीवाने "सौ" !!

"दो दिन की चांदनी" है कहीं यारों की यारी
"दो" दिलों का "लहू बहाने" के बहाने "सौ" !!

हो चुके "सौ" टुकड़े हर हंसीं मंज़र के अब
इन तन्हा खंडहरों को एक वीराना तो जीने दो |

बहा चुके जल, जला चुके जीवन जब सारा
अब अपनी जिंदा लाशों को बेरंग रक्त तो पीने दो |

Wednesday, April 4, 2012

बरस बीत गये सीते सीते...


एक मैं खुद और मेरा एक यार
मिलते थे हरदम, बाँहें पसार
दो घूँट रक्त और जाम चार
हम हर बार बैठ के थे पीते...

कभी संग संग, कभी कभी अकेले
ढूँढने को कुछ प्यार के मेले
दर्जन भर दांव जो हमने थे खेले
कुछ हम जीते, कुछ गम जीते...

जाने कहाँ वो इक दिन गया चला
उसे खोजने को मैं भी था निकला
उसके मेले तो मिले पर वो न मिला
मेरे नाम लिखे कुछ पत्र मिले पर रीते...

क्या बात थी जो वो कह न सका
क्या मुझसे ही कुछ हो गयी खता
इन प्रश्नों से तार तार हुआ ये मन 
जाने कितने बरस बीत गये सीते सीते....

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