Tuesday, September 27, 2011

क्या हुई खता...


ख्वाबों की देहलीज़ पे ही सही...बैठ संग मेरे, थोडा फिर से मुस्कुरा दे..
नकाब हटा रुख से ज़रा अपने...यूँ तेरे बिन जीने की कोई तो वजह दे...

जितना रुला ले, चाहे जो सजा दे, पर मेरे अरमानों की खता तो बता दे...
कोसूं जिसे अपनी बर्बादी के वास्ते, तेरे या मेरे दिल के उस कोने का पता दे..

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