Wednesday, November 2, 2011

नादाँ ज़िन्दगी ...

खुदा ने प्यार से इतने, लगा के साल यूँ कितने...
किसी बगिया के जैसी ये.. हंसी दुनिया बनायीं है..

बनाये रंक भी उसने, सजाये ताज भी कितने
किसी के लाख अपने हैं, कहीं सांसे परायी है...

छुपाये हैं कहीं आंसू, कहीं खुशियाँ छुपायी है...
सजता स्वप्न उसी सा है, इरादों में जो स्याही है...

निगाहें नर्गिसों की हों, या आँखें आशिकों की हों
कहीं बसती मोहब्बत है, कहीं बस बेवफाई है...

कुछ जज़्बात जीतते हैं, कभी इंसान जीतते हैं...
पर जीते दर्द हैं जिसने जितने, वही उसकी कमाई है..

गुलाब सा खिल के यूँ महको, न सोचो की दुनिया ने
तुमको बिखेर के ...
एक डोली सजाई है, या फिर कोई अर्थी सजाई है...

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