Friday, November 25, 2011

बेसब्री...किसी के "प्रीतम" की...


जब मिले न थे वो हमसे....जब तक मिली न थी उस नर्गिस से मेरी निगाहें...

तब तलक

बेसब्र ख्वाब थे मेरे..... बेसब्र थी आँखें.... बेसब्र कदम थे ... बेसब्र थी राहें.....



 मिल के भी अब क्यूँ वो पास नहीं...इतने दूर बैठ दिल को कैसे भला हम समझाएं ...

अब तो

बेसब्र है मोहब्बत मेरी, बेसब्र है हर हसरत....बेसब्र जज़्बात हैं...और बेसब्र हैं बाहें ....

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