Monday, November 28, 2011

जब तुम बड़े हंसी थे.....

जब तुम बड़े हंसी थे, दिलकश थे, दिलनशीं थे...
देखते थे तुमको हर पल, गुस्ताख वो हमीं थे...

तुम बदली प्यार की थी, और प्यासी हम ज़मीं थे....
मंडराता था ये दिल जहाँ, वो फूल एक तुम्हीं थे....

हम भी तो तब जवान थे, कुछ मेरे भी कद्रदां थे...
पर मेरी नींद औ सपने, बस तुमपे मेहरबाँ थे...

लिखता था जो भी नगमे, सब लगते बद्ज़बां थे...
लिख पाते तेरे लायक कुछ, ऐसे शब्द आते हमें कहाँ थे.....

2 comments:

  1. इश्क के किस्से नहीं, मैं मुहब्बत के फ़साने लिखता हूँ जो भी लिखता हूँ, तुझसे मिलने के बहाने लिखता हूँ ...

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  2. लिखता नहीं तजुर्बा, कोई ख्वाब नही लिखता.. मैं दीदार ए यार के इंतज़ार में खाली पड़े पैमाने लिखता हूँ....

    कोई राजा की कहानी नहीं, न परियों के किस्से लिखता.. मैं रात भर छत पे अकेले बैठे हश्र ए दीवाने लिखता हूँ ....

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