माना हमें आपकी तरह यूँ पलकें बिछाये इंतज़ार करना नहीं आता
आपकी मोहब्बत से सजी इस किस्मत पे ऐतबार करना नहीं आता
माना अपने बेपनाह इश्क का इजहार, सरे बाज़ार करना नहीं आता
पर इसका मतलब ये तो नहीं साहिबा, की हमें प्यार करना नहीं आता
My poems are just my feelings ...... sometimes true......sometimes they are just imaginary...... Meri likhi kavitayein... Kuch vaastvik bhavnao ka darpan h...kuch bas "kalpana" se bhari... Pesh-e-khidmat h chand Alfaz.....Umeed h aapko pasand aayegi yeh "Gazalein" meri...