Wednesday, December 28, 2011

I m a Rebel ...


They say...everytime n everyday...i have been doing good...
not me but happy they are...well...why not they should...

i played by their rules, to win predefined boring games...
followed the path engraved with their stupid old names...

there were lights but the goal's view was all so black...
had true fights, real opponents but victories all fake...

my own eyes, owned neither my sweet dreams nor my tears...
they setup my emotions, kept hold of my smiles and fears...

no songs or feets i danced with, were of my soul's choice...
it was not mine, not my written line, it was just my voice...

enough of this selfish love, sick i am of these caretakers...
let me write my life, leave blank now rest of its chapters...

i want to be in love, with ugly me, my mischieves, my peers...
to be stupid, to be a kid, to go wild, to party and do cheers...

don't dare stopping me now, stay away n let me forgive you...
reborn ghosts are dangerous to deal with, especially for you...

Tuesday, December 27, 2011

ये मौके हैं या धोखे हैं ...

उन निलोफर नज़रों में छिपे ये राज़ मुझे समझ नहीं आते ...
न नज़रंदाज़ कर पाते हैं और न उनसे नज़रें ही हैं मिला पाते...

क्या कोई हाकिम है मुमकिन,जो बता दे...ये मौके हैं या धोखे हैं.....
चंचल निगाहों से हर शाम, मेरी और जो इशारे हैं किये जाते ...

पेश करूँ भी तो क्या....?

एक अदद टुकड़ा चाँद ले आऊं....और ले आऊँ कुछ दर्जन सोने की मोहरें...

या लाऊं शहद भरा एक दिल, जिसके आँगन में सदा गुलाब रहें बिखरे...


मुट्ठी भर तारे लाऊँ, उसके साथ सजाऊं ढलती शाम की चंचल अंगडाई...

या लाऊं पावस का निर्मल जल, साथ बुलाऊं मद्धम सी बहती पुरवाई..


सूरज की मासूम किरणों की तपिश आने दूं या होने दूं वादियों सी ठंडक..

गीत सुनाऊं लहरों की कलकल के या सुनवाऊँ कोयल का मधुर कलरव...


मेरी पलकों से सजा के शामियाना, पहना दूं उसे मेरी बेसब्र बाहों के हार...

फिर पेश करूँ मेरा हाथ, मेरे जज़्बात, मेरा दिल, मेरी जान और मेरा प्यार...


अ कायनात, मेरा साथ दे कुछ, शमां वो बना, जिससे खुश हो जाये मेरा खुदा....

जिसका है मेरा "सब कुछ" पहले से , उसको तोहफे में अब पेश करूँ भी तो क्या....?

Saturday, December 10, 2011

सिवा उसके.....


इन अनगिनत तारों की चमक में हम सो नही पाते....
उसकी आँखों के सिवा किसी ख्वाब में खो नही पाते....

चाहे जितनी अँधेरी रात लेके ये चाँद रुलाने आ जाये....
उसके दामन के सिवा कहीं सर रख के हम रो नही पाते ..

Monday, November 28, 2011

जब तुम बड़े हंसी थे.....

जब तुम बड़े हंसी थे, दिलकश थे, दिलनशीं थे...
देखते थे तुमको हर पल, गुस्ताख वो हमीं थे...

तुम बदली प्यार की थी, और प्यासी हम ज़मीं थे....
मंडराता था ये दिल जहाँ, वो फूल एक तुम्हीं थे....

हम भी तो तब जवान थे, कुछ मेरे भी कद्रदां थे...
पर मेरी नींद औ सपने, बस तुमपे मेहरबाँ थे...

लिखता था जो भी नगमे, सब लगते बद्ज़बां थे...
लिख पाते तेरे लायक कुछ, ऐसे शब्द आते हमें कहाँ थे.....

Friday, November 25, 2011

बेसब्री...किसी के "प्रीतम" की...


जब मिले न थे वो हमसे....जब तक मिली न थी उस नर्गिस से मेरी निगाहें...

तब तलक

बेसब्र ख्वाब थे मेरे..... बेसब्र थी आँखें.... बेसब्र कदम थे ... बेसब्र थी राहें.....



 मिल के भी अब क्यूँ वो पास नहीं...इतने दूर बैठ दिल को कैसे भला हम समझाएं ...

अब तो

बेसब्र है मोहब्बत मेरी, बेसब्र है हर हसरत....बेसब्र जज़्बात हैं...और बेसब्र हैं बाहें ....

Some Two Liners


1.
वो कहते हैं, हम क्यूँ उनके सजदे में पलके बिछाये खड़े रहते हैं हर वक़्त....
हम क्या करें यारों... खुदा की इबादत में सर झुकाना बुजुर्गों ने सिखाया है....

2.
जिस दिन बयान करना होगा तुझे , तो अलफ़ाज़ मुझे और भी बहुत मिल जायेंगे ....
तू साथ रह बस, तेरी बंदगी में सजदा करने को कवितायेँ तो क्या, उपन्यास लिखे जायेंगे ...

3.
नशा करते है लोग ..कुछ छुपाने को ...कुछ जताने को ...कुछ कह पाने को ..कुछ सह जाने को ....  
मैं तो हर लम्हा पी जाता हूँ यूँ ही एक घूँट में ...खामखा कुछ और बूँदें बिगाड़ने की जरुरत कहाँ है ...

4.
साथ तू रहे तो जश्न में पीतें हैं महफ़िलें सजा के.... वरना जाम तो मैखानों में भी बहुत मिला करते है....
पलकें वही हैं, फर्क तेरी मौजूदगी का है बस...कभी इनमे जुदाई के आंसू.... कभी तेरे सपने खिला करतें हैं....

5.
कौन कमबख्त कहता है की खुदा नहीं होता....और किसने अफवाह फैलाई की किस्मत जैसी कोई चीज़ नही होती ......
वो खुशकिस्मत न होता ...तो कैसे कंकड़ बीनते हुए को रास्तों में यूँ ही पड़ा मिल जाता ... गहरे समंदर का नायाब मोती........

Wednesday, November 16, 2011

आ.... चलतें हैं कहीं... दूर....


आ.... चलतें हैं कहीं...

कहीं दूर....बहुत दूर...


बिन तय करे ....मंजिलों की सूरत...

किन्ही अनजान गलियों के मेहमान बनके...

यूँ ही... नंगे पाँव निकल पड़ें...मुस्कुराते हुए...


सीने से लगाये एक दूजे की बंद पलकें..

लेटे रहे घंटों खुले आसमान के नीचे...

हाथों में हाथ फंसाए, चांदनी से नहाते हुए...


रात भर वादियों में ही कहीं, बैठें हों..

जलती लकड़ियों के दोनों और...खामोश...

आँखों से एक दूजे की सांसें सुनते हुए...


हुस्न निहारने की कोशिशें...चलती रहें

रौशनी में बेबस बाहें...खुद ही खुद जलती रहें

फिर रात बीते, बर्फ की झूठी बूंदे चुनते हुए ...


ठंडी रेत ओढें हम, और कभी गुलाब की पंखुड़ियां..

झील के बीच ठहरी नाव से सितारों को निहारें...

बाहों में सिमटे, धडकनों से लिपटे...सोये रहें बेहोश हुए...


जी लें हर एक एहसास...दिल को थोडा बीमार कर लें...

दो पंछी बन उड़ चलें इंसानी ऊँचाइयों से परे...

उड़ते रहे, आवारा परिंदों से, बस दिल की सुनते हुए...


आ .... उड़ चलते हैं एक नए छोर की और...

आ ...उड़ चलते हैं कहीं दूर...बहुत दूर....


..........Dedicated to someone really special (May be..Yet to be Met)

Saturday, November 12, 2011

कागज़ का एक टुकड़ा....

छोटा सा, मैला सा कोरे कागज़ का एक टुकड़ा...
जाने कहीं से उड़ के कल मेरे पैरों में आ गिरा...

बदहवास सी दौड़ती हवा के बहाव के साथ साथ...
मेरी उँगलियों पे कसते जा रहे थे उसके कांपते हाथ...

वो थोडा रोया, कुछ देर चुप बैठा, कभी कभी चिल्लाया भी...
अचानक थोड़ी हंसी, कुछ यादें, दर्द भरी आहें मुझे सुनाई दी...

कभी रहता था वो भी, वादों से बंधे ढेरों अपनों के बीच...
कुछ अनकहे, अनसुने, बैचैन, खामोश से सपनों के बीच...

कुछ सजीले, चमकीले, महकते, चहकते से रंगों के बीच...
कुछ उम्मीदों, आंसुओं, वादों, बातों और उमंगों के बीच...

इक दिन उसे सहेजने वाले हाथों की लकीरों में सजा कोई ख्वाब जो बिखरा..
उसके चंद लम्हों बाद कुछ धागे और टूटे, और वो था घायल होके ज़मी पे गिरा...

वहां भी भीड़ थी उसके अपनों की, कुछ खाली, कुछ भाग्यशाली, पर थे सब जख्मी...
आज़ादी आई नसीब में सदियों बाद, पर अकेली, साथ थी तो बस आँखों की  नमी...

तब शुरू हुई थी ये उड़ान, जो सब उलझे हुए रास्तों से अब है गुजर चुकी...
कतरा कतरा करके वो बिखरता रहा, पर ये बेदर्द हवा तब भी न रुकी...

बेहतर होता गर जल जाता, कम से कम रूह को तो उसकी सुकून आता..
गर नसीब जल ही हो जाता, तो धीरे ही सही, उसका वजूद  भी घुल जाता...

बस मिली हवा, जिससे नासूर बन जातें है जख्म, मिली भी तो ऐसी इक दवा...
अब थक गया, रुक गया, झुक गया, बस नींद बख्श देने की मांग रहा रब से है दुआ...

जो सुनी ये मैंने दास्ताँ, पहचानी सी लगी ये उड़ान, लगा, मैं ये सारे लम्हे जी आया ...
मैं निशब्द, स्तबद्ध सा रह गया, जब उसकी आँखो के दर्पण में, दिखा मुझे अपना साया...

निर्जीव और बुद्धिजीवी, जी रहे एक सा जीवन गर, तो मानव श्रेष्ठ क्यूँ कहलाया....
मैं अब भी सोचता हूँ...गर सजीव हूँ मैं....तो क्यूँ इक कोरे कागज़ से बेहतर न जी पाया...  

Tuesday, November 8, 2011

"कुछ"..."कभी कभी"


कुछ जख्म दर्द नहीं दिया करते, और कभी एक खामोश नज़र रुला जाती है हमें ....
कभी गुस्सा प्यारा लगता है, वहीँ कुछ लफ़्ज़ों से मिली तकलीफें भी मज़ा लगती हैं ....

हक की कुछ कुछ बेड़ियाँ कभी चुभती नही, कभी अकेले उड़ना बंदिश सा लगता है...
कुछ आंसू हंसा देते हैं कभी दिल को , वहीँ कभी यूँ ही मिली माफ़ी भी सजा लगती है...

Wednesday, November 2, 2011

बेफिक्री उनकी ...

देखा नहीं जिन आँखों ने ....मुझे उन चार सालों में...
आया न होगा चेहरा मेरा.....कभी जिनके ख्यालों में....

मर गये उनकी गली में एक दिन...सोचा वो जानेंगी इसी बहाने से...
यहाँ उठ गया जनाज़ा मेरा...उन्हें फुर्सत न मिली मेहँदी लगाने से... 

नादाँ ज़िन्दगी ...

खुदा ने प्यार से इतने, लगा के साल यूँ कितने...
किसी बगिया के जैसी ये.. हंसी दुनिया बनायीं है..

बनाये रंक भी उसने, सजाये ताज भी कितने
किसी के लाख अपने हैं, कहीं सांसे परायी है...

छुपाये हैं कहीं आंसू, कहीं खुशियाँ छुपायी है...
सजता स्वप्न उसी सा है, इरादों में जो स्याही है...

निगाहें नर्गिसों की हों, या आँखें आशिकों की हों
कहीं बसती मोहब्बत है, कहीं बस बेवफाई है...

कुछ जज़्बात जीतते हैं, कभी इंसान जीतते हैं...
पर जीते दर्द हैं जिसने जितने, वही उसकी कमाई है..

गुलाब सा खिल के यूँ महको, न सोचो की दुनिया ने
तुमको बिखेर के ...
एक डोली सजाई है, या फिर कोई अर्थी सजाई है...

Monday, October 31, 2011

पिछले कुछ दिन...यारों के संग ...यारों के बिन ...

व्यस्त था मैं पिछले कुछ दिनों....
अपने निठल्लेपन में...
समय के बदले समय मांग रहा था..
भीड़ तलाश रहा था अपने अकेलेपन में...


यूँ बेकार बैठा कुरेद रहा था...
छोटे छोटे सुराखों को ...
प्रेम से बनाये स्वप्न महल को
खोखला बस कर रहा था...


कोई वजह न थी ...
बस व्यर्थ का समय था,
और व्यर्थ की ऊर्जा...


ये सब व्यर्थ में ही उधेड़बुन मचा रहे थे मेरे ही सपनों के खिलाफ
मैं व्यर्थ ही व्यर्थ की साजिश रच था मेरे ही अपनों के खिलाफ

ये तो खुशकिस्मती थी की नाजुक न थे कंधे मेरे यारों के...
तो खड़ा रहा आशियाँ-ए-दोस्ती यूँ ही बिन दीवारों के...

अब तो कुछ सांसें अपनी बेवकूफी पे पछता रही हैं ...
कुछ अपनों के सजदे में परायी होके खुद पे इतरा रही हैं...

कुछ शब्द जो मैंने कहे उन्हें...
कुछ डांट जो उनसे सुनी उसपे...
मैं आंसू बहाते हुए हंस पड़ा...


दिख गया वो मुस्कुराता साया...
उसी सुराख से आई रौशनी में...
जो चुप चाप वहीँ मेरे पास था खड़ा...


वो कहता है हंस के मुझसे... तू जानता है...
एक बात को कितनी बार कहूँ...
तू ख़ास है मेरे ख्वाबों में...
चाहे जितना भी तुझसे दूर रहूँ...

मैं भी कह पड़ा...हर बार की तरह...

हाँ पता है मुझको ...यार मेरे...
मेरे ख्याल भी है बस नाम तेरे ...
बस तुझसे "कुछ भी" से लेकर
"सब कुछ" तक सुनना अच्छा लगता है ...
इस तेरी आदत के मारे को,
बस तेरे साथ का लालच ठगता है...

फिर खड़े हुए वही साए दो ...
फिर गले मिल यूँ मुस्कुराये वो ...

बोले ....

आँखें अकेले में कभी भिगोना ना,
इन लम्हों को दामन से कभी खोना ना...
हंस के जियेगा तू जितने दिन...
मैं भी रह लूँगा तेरे बिन...
जब सांस टूटे मेरी तब रोना बस एक दिन....
निकलूंगा न यूँ दिल से तेरे, मेरे हिस्से के आंसुओं के बिन....तेरे आंसुओं के बिन....

Thursday, September 29, 2011

मैं शराब हूँ....


मैं शराब हूँ....


आशिक की नशीली नज़रों के प्यालों में सजा, उसके कमसिन होठों का शरारती शबाब हूँ

माशूक की यौवन बगिया में लहराता, मचलता, अल्हड अदाओं का नाजुक सा गुलाब हूँ


मैं शराब हूँ....


मयखानों के फर्श पर गिर के टूटे हुए जाम-ए-दिल का, इक बिखरा बेजान सा ख्वाब हूँ 

जीवन के अँधेरे रास्तों में बिछे हैं बेदर्द सवाल जितने, उनका सीधा और सरल जवाब हूँ

मैं शराब हूँ....


गुमनाम ख्वाहिशों और अधूरी हसरतों के कोरे पन्नो को,अपने दामन में समेटे एक किताब हूँ

चुभन का, हर जख्म की जलन का, हर पल मरते जीवन का, सहेज के रखा हुआ हिसाब हूँ

मैं शराब हूँ....


तन्हा शामियानों में ढली हर शाम, उस खाली रखे जाम को देख, तेरे साथ जला जो वो चिराग हूँ ...
तेरी भीगी पलकों और दबी सिसकियो को ज़माने से छुपाया जिसने आज तलक, मैं वही नकाब हूँ...

मैं शराब हूँ....


नजराना हूँ मेरे कुछ खादिमों के वास्ते, रात भर तड़पती, बेचैन रूहों के लिए सुकून भरा महताब हूँ ....

तेरे लबों की हसीं हसरत हूँ, फीकी अदाओं और कम खुबसूरत बलाओं की नफरत हूँ पर लत लाजवाब हूँ .....


मैं शराब हूँ

Wednesday, September 28, 2011

बाज़ार सजा है....


बाज़ार सजा है, अरमानों की बिकवाली - उम्मीदों की दलाली के लिए.....
लगी है हर कहीं इस शहर में अपनों का गला घोंटते झूठे रिश्तों की मंडी....

रक्त वर्ण से लथपथ काया, कालिख लगाती है चेहरे पे लाली के लिए...
न बारिश की बूँदें धवल, न इनमे जल, न इन्द्रधनुष दिखे अब सतरंगी ...

स्वप्न सजाने को जीवन जलता, दिल कितने जला रहें है दिवाली के लिए....
जल गये संस्कार, व्यवहार कब के, कर्तव्यों की चिता पड़ गयी अब ठंडी..

नीड त्याग भाग रहे, रात रात भर जाग रहें, ख्वाबों की रखवाली के लिए...
उस बेशक्ल मंजिल की ओर, जहाँ ले जाती है इक अंतहीन अँधेरी पगडण्डी....

Tuesday, September 27, 2011

क्या हुई खता...


ख्वाबों की देहलीज़ पे ही सही...बैठ संग मेरे, थोडा फिर से मुस्कुरा दे..
नकाब हटा रुख से ज़रा अपने...यूँ तेरे बिन जीने की कोई तो वजह दे...

जितना रुला ले, चाहे जो सजा दे, पर मेरे अरमानों की खता तो बता दे...
कोसूं जिसे अपनी बर्बादी के वास्ते, तेरे या मेरे दिल के उस कोने का पता दे..

Monday, September 26, 2011

तेरा शहर .....

क्या कम बंदिशें हैं ज़माने की, तेरे लिए या मेरे लिए,
इन तंग दिलों की गलियों से गुजरते डर लगता है
इस बोझिल सोच के संग उड़के थक जाता हूँ जब जब
सो पाऊँ जहाँ तेरी गोद में वो हर कोना एक घर लगता है
एक अमृत अंश जो होश बक्श्ता है बेचैन रूहों को
वो जाम -ए - मोहब्बत इन्हें जाने क्यों ज़हर लगता है
सजाऊं कैसे ओ सजनी, महल तेरे सपनों का इस मिटटी पे,
तू है मेरी अपनी, पर मुझे पराया तेरा अपना शहर लगता है

Friday, September 9, 2011

हसरत-ए-इखलास

हर नगीने की चाहत अंगूठी बनना नहीं होती ..........
हर फूल गले का हार बनके सजना नहीं चाहता ..........

बस मुस्कान बढ़ाने का इरादा हो जिसके दिल में.....
वो हीरा तो पैरों की पायल में छुपकर भी है इतराता.....

इजहार-ए-इखलास

चाहे चाहने वाले बेशुमार हों यहाँ .....इस प्यारे से रोशन चाँद के ....
बस थोडा सा हक अपना चाहता हूँ.... इस मुखड़े की मुस्कान पे...

गम नहीं गर याद न आऊँ तुझे खुशियों में, जब लाखों फूल सजे हों तेरे गले....
तन्हाई ठगे कभी तो उठा लेना...फूल बन सोये होंगे हम वहीँ तेरे क़दमों तले.....

Thursday, September 1, 2011

कितने रंग हैं इस दुनिया के....

काले पीले कुछ चमकीले.....रंग हैं सब दिल के ही अपने .....
कोई है चाहत, कोई शरारत...कुछ धोखे और कुछ हैं सपने....
कितनी खुशियाँ...कितने आंसू...किसे छुपा लूं...किसे मैं बांटूं....
इतने मुखोटे इस दुनिया के...यहाँ सच्चा चेहरा कैसे छांटू...

until..i met you ...

i was walking in d crowd,
bt along wid a lonliness...
my heart was content,
bt wid a corner full of emptiness.....
had everything at my bay,
still missed a pure happiness....
had all i dreamt in my arms,
yet some nights were restless...
didn't knw the reason....
didn't have any clue...
until n unless i met you ...

Tuesday, August 30, 2011

"seperation....why ?" By Saytida

I promised to keep u happy
Singing and dancing forever
I promised it to me
To make u cry never
But today when I look back
I find myself trapped
A cold chill goes up my spine to the neck
Seeing the luv between us lying wrecked
I wish i could make things right for u
Take u out of this sorrow
Please believe me its true
Albeit my actions make my love look shallow
I wish I could bring smile to your face and make your eyes glow bright
But its painful to realize that our love is the reason of your plight
Going separate, i don't know how to handle this
but if it makes your life any easy then, so be it.                                  
                                                                            Courtesy : Aditya Aswani

Friday, August 26, 2011

तब.....आप न थे

सोया रहता था बेसुध हर घडी
रात भर जगाएं रखें मुझें जो
इन आँखों में वो हंसीं ख्वाब न थे

पिरोया करता था शब्द पहले भी मैं
पर वो कभी ग़ज़ल न बन सके
क्यूंकि तब उन ख्यालों में आप न थे

Tuesday, August 23, 2011

All I feel is this .....


why i am upset if she goes away...
if i dnt want her den y do i pray...

two separate ways, having nothing to say...
still i want to walk with her everyday...

she rules my heart,is in best of my thoughts...
we share most of d smiles bt no common votes...

she is nt mine still i miss her the most...
y i am afraid as if smday she wil be lost...

may be i am not the best for her, but no one is...
i don't know bout love but all i feel is this...

Saturday, August 6, 2011

मेरे यारों को सलाम लिखूं ..... Happy Friendship Day

कभी मुहब्बत लिखता हूँ, कभी तकल्लुफ लिखता हूँ
                        पर जरुरी तो नहीं हर मर्तबा यही चर्चा एक आम लिखूं
कभी शिकायत लिखता हूँ, कभी नजाकत लिखता हूँ
                        आज दस्तूर है तो क्यूँ न दोस्तों के लिए इक कलाम लिखूं

झगडे भी लिखूं, लिखूं दिल से जुड़ा हर इक किस्सा भी
                          हर जिद, हर वो शर्त जो थी उनके बनाम, लिखूं
हर दर्द लिखूं, हर वक़्त मेरे साथ खड़ी वो परछाई भी
                          उन हाथों की छाँव में बेचैन रूह को मिला हर आराम लिखूं

हर ख़ुशी, हर जीत लिखूं, संग संग तोड़ी हर रीत लिखूं
                           वो पगली सी मौज, हँसते मुस्कुराते गुजरी हर शाम लिखूं
साथ गाये बेसुरे गीत, रात भर बजता वो संगीत लिखूं
                           रेत पे लिखा फिर भी हर तूफ़ान में मुस्कुराता वो नाम लिखूं

ये दूरियां लिखूं, उसके साथ न होने की मजबूरियाँ लिखूं
                           या मेरी हर तन्हा महफ़िल में खाली रखा वो जाम लिखूं
जिस पल मिला था अ दोस्त तू मुझे, उस लम्हे को सौ सलाम लिखूं
                           पर ये तो बताओ, किया अलग हमें जिसने, उस खुदा पे क्या इल्ज़ाम लिखूं

मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...............

Thursday, August 4, 2011

to be ....

sitting idle on the sea shore
m wishing for one more
one more life to love you
to spend looking at you 

to wait for you in your way to home
to sleep in the soil where you roam
want neither rules nor any relations
no other dreams to waste life for
but thousand of hearts for sure

to beat listening to your voice
to dance as per your choice
to be a sky when you want to fly
to die when you cry
to be the one you like to flirt
to bleed when you are hurt

to be one dream you want to live
to be in the thoughts you are lost with
to be with you, in you all the time
to keep praying for you to be mine 

प्यार तो वो भी करते थे...

वो मुस्कुराते नहीं थे ज्यादा, पर शिकायतें भी हमसे कहाँ किया करते थे
छुपाते न थे राज़ - ए - दिल हमसे हर बार, बस कुछ जज्बातों का ज़िक्र ना करते थे
देखते नही थे प्यार से हमें, न उनके सपनों में वो हमसे मिला करते थे
हमारे शहर से जाते वक़्त ज्यू भीगी पलकें उनकी, लगा की प्यार तो वो भी करते थे

Friday, July 29, 2011

जाने कौन क्या समझे

ये दरिया - ए - इश्क की गहराइयां अँधेरी बहुत हैं

ये मंजिल - ए - मोहब्बत के रास्ते भी कहाँ सुलझे हुए हैं

अब तो मीठे लफ़्ज़ों में हाल - ए - दिल कहना भी मुनासिब नहीं

जाने कौन समझ बैठे की हम उसके ख्यालों में उलझे हुए हैं 



क्यों खफा हैं वो ....

तकल्लुफ तो उन्हें उस आवारा चाँद से होनी चाहिए

जो रात भर खिड़की से झांकता है छुप छप के उनका नूर चुराने को 

पर जाने क्यूँ वो खफा हैं हमारा उनकी गलियों से याराना जानकर

हमने तो फिर भी सरे बाज़ार सर उठा के नज़रें मिलाने की जुर्रत ही की है 

Wednesday, July 27, 2011

Special One...

i just brought some wet sand,
got myself a creative hand,
bought a place in some island,
and also some sticks to bend


turning the walls in a sweet home,
wid a beach in front to roam,
dancing a lot on her favourite song,
trying to sing bt got it all wrong,


her way is abound with some flowers all fresh,
candles are glowing it to a cherry choco cake,
a bunch of roses n lilies and one black dress,
a red wine and a poem, she will love it i guess,


preparing it all as she loves it as a gud surprise,
she is my beautiful imperfect angel but in disguise,
she is the wind i fly with n she own my wings,
m d happiest person to have her in my arm rings

Monday, July 18, 2011

जकड़न जीवन की ....


रिश्तों की जमा पूँजी को किश्तों में बेच बेच कर 
जो स्वर्ण समेटा है 
जो स्वांग लपेटा है

अब आंसुओं में धुल रहा है 

यही सफलताओं का ढेर 
बर्फ की रंगहीन तंग कैद में बदल रहा है 

मेरे सिमटे घुटनों की जकड़न के बीच 
सर भी तो छुपाया नही जाता अब मुझसे  


रक्त का जोश पथरा गया है
जहाँ तहां रुका बैठा ये भी समय व्यतीत कर रहा है बस 


नीली पड़ चुकी रक्त्जाल की रक्षक ज़मीन  
एक विष प्रवाहिनी प्रतीत होती है 

दिल खौफ में भी है और शायद इसीलिए चुप भी 
सहमी सांसें भी
रुक रुक कर 
छुप छुप कर
चुप चुप सी रोती है


कभी रात के शौक से अंधियारी लगती है गलियाँ  
और कभी सुख के सूरज की चकाचौंध में दृष्टि टूट जाती है 

इन बर्फ की उजली दीवारों में अँधेरा भी दिखाई देने लगा है  
और बस अँधेरा ही नज़र आता है 

इस प्राणहीन कटघरे में पड़ा बस तेरा इन्साफ देखने को 
रुका है ये राहगीर ओ मौला

कुछ कर पिघलाने को ये बेड़ियाँ 
बहुत लम्बी हो चुकी ये सर्द यात्रा मेरे जीवन की  
या तो पथ पे खड़ा हो जा चिराग लेकर 
या मेरा इसी मंजिल से ये आखरी सलाम स्वीकार कर 

Wednesday, July 13, 2011

खुदा खो गया हो जैसे ....

भोर की आँखें बोझिल हैं, तन्हा चाँद कल रात भर न सोया हो जैसे....
शाम का आँचल भीगा है, ढलता सूरज गोद में उसकी रोया हो जैसे....
न शाखों पे पत्ते, न हवा में खुशबु, न बगियाँ के फूलों में रंगत बची हैं...
ज़र्रे ज़र्रे की मुस्कान चली गयी तेरे जाने से, इस कायनात ने खुदा अपना खोया हो जैसे ...

मैं प्यार सीख रहा हूँ ...

बस खफा होने का तजुर्बा था मुझे, अब मिन्नतें करके मनाना सीख रहा हूँ
छुपाये रखे थे राज़ - ऐ - दिल जो मैंने, उन्हें किसी को बताना सीख रहा हूँ 
लफ़्ज़ों को पिरो के किसी गीत में, उनसे इजहार करने का बहाना सीख रहा हूँ 
जिनके क़दमों से महका है गुलशन मेरा, मैं उनकी राहें सजाना सीख रहा हूँ  
नींदें चुराता था कभी मैं , अब अपना ही चैन खोना सीख रहा हूँ 
बचा के रखा था ये मासूम दिल अब तलक, अब किसी का होना सीख रहा हूँ 
खुश रहा करता हूँ ख्वाबों से जिनके, उनकी जुदाई में रोना सीख रहा हूँ 
जो नूर बरसता है नज़रों से उनकी, उस प्यार में दामन भिगोना सीख रहा हूँ 

Sunday, June 5, 2011

वो हक जताएं तो सही ...

उनके दामन में खुशियों की सौगात सजा दूं...वो ज़रा फरमायें तो सही ....
पलकें बिछा दूं उन क़दमों तले मैं...वो मेरी गली कभी आयें तो सही..... 

इन्द्रधनुषी श्रंगार से सजा दूं दर्पण...वो नज़र उठा खुद को निहारें तो सही ...
चला आऊं हर कसम तोड़ के पहलु में उनके.....वो एक बार पुकारें तो सही ... 

सजदे में उनके हर ताल बाँध दूं .....वो अपने सुर सजाएं तो सही ...
रात चाँद को ताके बिना सो भी जाऊ....वो इन बालों को सहलाएं तो सही ....

आँख खोल सुबह को सलाम करू मैं....पर वो मेरे सपनों से जायें तो सही ...
तड़प तड़प के भी जी लेगा ये दीवाना...वो जान बूझ के मुझे सताएं तो सही ....

उनके दिए आंसू भी मोती समझ संजो लूं ...वो एक बार रुलाएं तो सही ....
पेश -ऐ - खिदमत कर दूं ये सर कलम कर....पर वो मुझपे हक जताएं तो सही ....

Saturday, June 4, 2011

तलाश

मोहब्बत हुस्न वालों से हमें रोज़ हुआ करती हैं.....
पर कमबख्त ये इंतज़ार खत्म होता नज़र नहीं आता.....
या तो निगाहें नज़रंदाज़ कर रही हैं किसी के ख़ास अंदाज़ को...
या फिर इन्हें ये नहीं पता की हमें तलाश किसकी है... 

Wednesday, June 1, 2011

खुशनसीबी


वो गाती गुनगुनाती, तेरे बालों को लहराती ...ये हवाएं खुशनसीब हैं 
छुपते छुपाते या नज़रें मिलाके, तेरा नूर चुराती निगाहें खुशनसीब हैं 
सपनों में, अपनों में, वो चाही अनचाही हमारी मुलाकातें खुशनसीब हैं 
तन्हाई में, रुसवाई में, तेरी याद में तनहा कटी मेरी रातें खुशनसीब हैं
इतने सलोने अक्स में ढला जो, तुझे मिला जो, वो नसीब खुशनसीब हैं 
सब छीन जाए पर तू मिल जाये तो मैं मान लूं की ये गरीब खुशनसीब है 

Saturday, May 14, 2011

"प्रेम".... इसकी परिभाषा क्या है ?

प्रेम ... एक अद्भुत शब्द ....और मेरा ये लेख इस शब्द का सार्थक अर्थ ढूँढने का प्रयास ...

वर्तमान परिदृश्य में "भावनात्मक होना" समझदार  व्यक्तित्व  का अंग  नहीं  माना  जाता किन्तु कद्रदानों की गिनती के लिहाज से "प्रेम"  एक भाग्यशाली भावना है | भावुकता की उलझनों से बचने की हर संभव कोशिश करता मानव प्रेमजाल में फंसना अपनी खुशकिस्मती समझता है और क्यों न हो, मात्र ढाई आखर संजो देने से बना यह शब्द विश्व के सबसे सुहावने रिश्तों को संवारता है |

प्रेम का क्रीड़ास्थल वृहद् क्षेत्र में विकासशील है, न खिलाडी कम होते नज़र आते हैं, न ही क्रीडा प्रेमी | प्रेम सबसे ज्यादा प्रचलित विषय है और शायद इसी भेडचाल की बदौलत हर मनुष्य का दिमाग इसी के इर्द गिर्द मंडराना पसंद करता है | इस विशेष योग्यता पुरस्कार का कारण या तो इस शब्द की वृहद् उपयोगिता है या फिर ये सत्य है की इस कायनात का सबसे खूबसूरत पहलु प्यार ही है |

इसका चाहे जितना शक्तिशाली अस्तित्व हो पर मैं प्रेम को एक आत्मनिर्भर भावना  नहीं मानता | ये भिन्न भिन्न परिस्तिथियों और अवसरों पर जाने कितने एहसासों का प्रतिफल  या एक पृथक नाम है | पिता के लिए आपका आदर, माँ की ममता, आपका किसी व्यक्ति विशेष के विचारों के प्रति सम्मान, नादान बच्चों की शरारतों से मिलने वाली ख़ुशी, दोस्तों के ख्याल रखने की आदत से मिलने वाला सुकून, मेहनत  के अनुरूप फल देने वाले कर्म से संतुष्टि, किसी  ख़ूबसूरती या किसी के धैर्य की प्रशंसा या फिर "किसी से विचार मिलने पर आँखों का समझदार हो जाना" - यही सब मौके प्रेम के  जन्मदाता है |

प्रेम पावन भी है और कभी कभी कलुषित मुखोटे का स्वामी भी, किन्तु चंद अवसरवादियों ने अपने स्वार्थ भुनाने को "प्रेम" का दायरा संकुचित करके विपरीत ध्रुवों के आकर्षण पर केन्द्रित कर दिया है | यह दुर्भाग्यपूर्ण है की जिन  अवसरों का विश्लेषण किया जाता है उनमे इस मैराथन के धावक कोई प्रेमी युगल ही होते हैं | "उदाहरण केवल नाकामयाब रिश्तों और कामयाब इंसानों के ही दिए जाते हैं |" इन्ही "कुकृत्य" के मौकों पर अपने प्रभुत्व और तथाकथित समाजसेवी होने के अधिकार के चलते कुछ ठेकेदार "प्रेम" को कलंकित कृत्य करार देते हैं | सफलता तो कई बार खून के रिश्तों को भी नसीब नहीं होती किन्तु वो भुला दिया जाता है क्युकी उस मुद्दे का चीरहरण करने से उनका स्वार्थ सिद्ध नही होता |

इस सामजिक जीवन में रिश्ते खट्टे मीठे क्षणों को साथ मिल के जीने का ही निमित्त हैं | अगर आप अपने माता पिता, रिश्तेदारों से प्रेम कर सकते हैं, अपने आदर्श व्यक्तित्व वाले प्राणी से प्रेम कर सकते हैं तो किसी नए साथी को जीवन में लाकर उससे प्रेम बंधन बांधना अनुचित तो नहीं | प्रीतान्कुर के अंकुरण से लेकर  प्रेम विवाह के निर्णय तक सब "जायज़" होता है यह मैं नहीं कहता, परन्तु हर रिश्ते को नाम देने और उसकी मंजिल तय करने का हक इन "विशेषज्ञों" को किसने दिया ?

हर रिश्ते के प्रति एक कलुषित नज़रिया विकसित करने में मैं "बॉलीवुड" के "प्रेम और प्रेम विवाह" के अलावा किसी भी मुद्दे को परदे पर न उतारने की कसम खाने वाले निर्देशकों का बहुत सहयोग मानता हूँ | लड़की की हर मुस्कान को उसकी "हाँ", और हर सास को खलनायिका  दर्शाने का बीड़ा उन्होंने बखूबी निभाया | आज उन्ही की बदौलत कोई साधारण विचारधारा का मालिक नहीं हैं, सब पर एक "विशेष सोच" की परत चढ़ चुकी है | ज़िन्दगी मुश्किल है नहीं, ज्यादा सोचने की वजह से कठिन हो जाती है |

प्रेम पुजारी होने का दावा करने वाले जब एक दुसरे की मजबूरियों को स्वार्थ का नाम देते हैं तो  उनके भी "एक विशेष सोच" से ग्रसित होने का संकेत मिलता है | आप बिना प्रेम किये भी किसी के व्यक्तित्व को सराह सकते हैं, बिना दोस्ती के किसी की मदद कर सकते हैं | पर ना तो ये करने वाले इतना कम सोच पाते हैं, ना ही जिनके लिए किया जाता है वो | अपने कर्तव्यों का सहज पालन अस्तित्व की कुर्बानी समझ आने लगता है |

प्रेम ओछी हरकत नहीं है परन्तु उसके लिए "बंद दिमाग" से लिए गए निर्णय भी सही नही ठहराए जा सकते | हर नाम में प्रेम महत्वपूर्ण है |  अगर प्रेमी / प्रेमिका से तुम्हारे बंधन प्रगाढ़ है तो माता पिता के साथ तुम्हारे संबंधों की गरिमा भी विचारणीय है | शायद कहना आसान है, सोचना बहुत मुश्किल है और करना उससे भी ज्यादा मुश्किल है |

एक लकीर अवश्यम्भावी है, बस वो खुद खींचो | किन्ही चंद लकीरों के फ़कीर बनकर दूसरों के लिए अपना जीवन उलझाओ | जो करना है स्वविवेक से करें ...निर्णय "यश राज फिल्म्स" के किरदारों की ज़िन्दगी का नहीं, आपकी ख़ुशी का है | "प्रेम" आपने किया है , उसकी परिभाषा भी आपही को लिखने का अधिकार है |

"हर प्रेम की विजय आवश्यक है वो जिस भी आकार, प्रकार, नाम, उपनाम में हो "

इस विषय को चुनने के पीछे भी "प्रेम" ही छिपा है, मेरे शब्दों का उनके पाठकों के प्रति प्रेम और पाठकों का एक मसालेदार वाद परिवाद से प्रेम क्यूंकि वर्तमान समय में सबसे ज्यादा प्रचलित और चर्चित भावना "प्रेम" है |

Thursday, May 5, 2011

गर बेवफा हो वो...

जहाँ कुछ  बंधन  दर्द दे जाते है  वहीं  कुछ रिश्तों  की  गांठें मौत से भी हमें बचा लाती  हैं ...
चाहे जितनी चोटें खा ले, पर इस दिल - ए - नादाँ की ये उलझनें कहाँ सुलझ पाती  हैं ...

गर  मिले  सच्चा  प्यार  करने  वाला  तो  बेखुदी  का  आलम  रहता  है बिन  शराब  के ....
वहीं गर बेवफा हो देने वाला तो चुभने लगते हैं हाथों में नाजुक पत्ते उसी गुलाब के ....

Tuesday, May 3, 2011

मैं ..."शब्दों" के संग

उन्मुक्त  बंधन  में  लिपटी  लहरों और  शांत  चंचलता  के  साथ  कल  कल  ध्वनि  करती  वो  निरंतर  प्रवाह   की  स्वामिनी  बन  इठला  रही  है, उसी  के  दो  विरोधी  किनारों  पे मुझे  दो  भिन्न  संस्कृति  नज़र  आती  रही  है |

एक  तरफ  साज  है, श्रंगार  है.....समाज  है  और  बाज़ार  है
तेज़  धुप  है, ममतामयी  छाँव भी  है ...कुछ  शहर  है, चंद  गाँव भी है 
हंस  हंस  के  लोट  पोट  होते  बच्चे , और पसीने  बहाते  किसान  है  
मंदिर  और  गिरिजाघर  है ....कहीं  गुरबानी  कहीं  अजान  है |

पर  दुसरे  छोर  के  घने  जंगल  के  सन्नाटे  को  चीरती  वो  पगडण्डी  जहाँ   जा  रही  है , उस  वातावरण  को  संस्कृति  कहना  शब्द  का  दुरुपयोग  करने  जैसा  है..... शायद  संस्कृति  के  सृजन  के  लिए  सहयोगी  घटक  उपलब्ध  नही  हैं  यहाँ |

झुरमुटो  के  तले  अँधेरे  में  नगण्य  गति  से  पलके  झपकाती  हुई, पलाश  के  जीवनहीन  पत्तों  की  चादर  में  दुबके  अपनी  पहचान  के  लुप्त  होने  का  इंतज़ार  कर  रही  एक वैभवहीन  झोंपड़ी |
जितने  प्रेम  और  निस्वार्थ  भावना  के  साथ  ये  संस्कृतिहीन  व्यवहार  मुझे  अपने  आलिंगन  में  लेता  है, उतने  जज्बातों  के  लिए  शायद  दुसरे  छोर  पर  अपनी  पूरी  आजीविका  व्यय  करनी  पड़े |

समाज  बहुत   प्रेमी  है, बस  उद्देश्यहीन  नही  है |
हर  इंसान  अपनी  मंजिल  की  तरफ  दूसरी  इंसानी  सीढियों  को पीछे  धकेल  कर आगे  बढ़  रहा  है | जितना  मूलभूत  नियम  भौतिकी  का  यह  है  - "चलने  के  लिए  आपको  प्रथ्वी   को  पीछे  धकेलना  होता  है" , सामाजिक  स्वभाव  में  उतनी  ही  गहराई  तक  "पीछे  धकेलने " का  नियम  समाहित  हो  गया  है  ...

प्रकृति  ने  हमारे  लिए  कोई  नियम  नही  बनाये  बस  स्वतंत्रता  दी , उसी  हक  के  गुमान  में  हमने  दूसरों  के  अधिकार  छीनने   शुरू  कर  दिए | नियमित  जीवन  आदर्श  माना  जाता  है  पर  नियमो  की  पारदर्शिता  भी  एक  विचारणीय  बिंदु  है |
वर्तमान  में  नियमो  के  अर्थ  अपनी  अनुकूलता  के  अनुरूप  ओढ़े  जाते  है और  जिनका  चोगा  बदलना  मुश्किल  है  वो  तोड़े  जाते  हैं |

सामाजिक  पशु  होने  का  धर्म  मैंने  भी  निभाया, नियम  निभाए  किन्तु जो  भी  मिला  "थोडा  कम " लगता  था ..संतुष्टि  नहीं  मिली | फिर  नियम  बदले  भी  और  तोड़े  भी और  जब  नियम  तोड़े  तो  लगा  जैसे एक  लकीर  को  छोटा  साबित  करने  के  लिए  बड़ी  लकीर  खेंच  दी  मैंने ...."जी तो भरा नही" बस  अपने  ही  दामन  पे  कुछ  कालिख  और  लगा  ली |

गलतियाँ  करने  के  लिए  हर  बार  मेरे  "सर्वाधिकार  सुरक्षित"  हैं और गलती  छुपाने  का  मानवीय  स्वभाव भी  मेरा  अभिन्न  अंग  है |  परन्तु इस  कलुषित  चेहरे  के  लिए  दोष  किसे  दूं  ?

लालच तो मेरे  सर  पे  भी  सवार  है , संतुष्टि  ना  मुझे  है  ना मेरे  चाहने  वालों  को, ना  मैं  संयम  का  स्वामी  हूँ और  ना  ही  वो  चंद  लोग  जो  मुझे  अपना  कहते  है |


मेरी  मनास्तिथि  की  उधेड़बुन  के  निचोड़  में  मुझे  कभी कभार  "प्राप्ति " के  सतरंगी  रंग  नज़र  आते  है  और  फिर  क्षण  भर  में  सब  घुल  के  किसी  श्वेत  शून्य  में  खो  जाते  हैं, शायद  कुछ  खोने  का  एहसास  दिलाने  को |
  
बस इतना जान पाया हूँ की स्वर्णआभूषित   दुल्हन  का  सौंदर्य  हो  या  सर्वोच्च  पद  पे  आसीन  होने  का  वैभव, सबमे "कुछ कम" है ...

पुराणोक्त   स्वर्ग  के  ऐश्वर्यों  से ऊंचा  क्या  पा  सकते  है  हम ?
पर  क्या  वहां जाने  के  बाद  भी सुख  के  आदान  प्रदान  की  प्रथा  पर  अंकुश लगाया  जा  सकेगा ?
अगर  नही,  तो फिर  कहाँ तक दोडेंगे हम और क्या पाने को  ..?

परिवर्तन  आवश्यकता  है और उसकी कोशिश एक समझदार निर्णय |
एक बार इस  खतरनाक  सुन्दरता  से  दूर,  वही  उस  बयाबान  बीहड़  में  दुबकी एकाकी  झोंपड़ी  के  ठंडी मिटटी  के  आँगन  पे  लेट  कर  ज़रा  आँखें  बंद  करने  से  शायद  वो  मिल  जाये  जो  इस  छोर  पे कभी  ना  मिलने  का  वायदा  कर  सकता  हूँ  मैं |

मेरी  हर  उलझन, जिसमे  मैं किसी  न  किसी के  उलझे  हुए  चरित्र  को  सुलझाते  हुए  थक  जाया  करता  था  , यही पे  आकर  स्वतः  ही  समाप्त  हो  गयी |

कहते  हैं - आँखें  खुली  हो  तो  दिमाग  शांत  नही  रह  सकता, पर  मेरे  अनुभव  से  लगता  है - आँखें  बंद  करने  के  बाद विचारों  का  प्रवाह  ज्यादा  तीव्र  होता  है, तूफ़ान  से  पहले  शांति  रहती  है  पर  विचारो  का  वेग  उच्चतम  स्तर पे  जाकर ही  नियमित  होता  है |

जब  जब  मेरे  मन  में  विचारों  का  द्वंध  छिड़ा, मैं  वही  ठंडी  मिटटी  में सर झुकाए बैठा रहा और  शायद  हर  बार  मुझे  सही  जवाब  मिले, मुझे सुकून की  नींद  आई  |
अपने  दिमाग  के  बुने  जाल  से  अगर  आप  स्वयम  को  मुक्त  कर  सकते  हैं  तो शायद  और  कोई  बाँध  नही  सकता  आपकी  सरलता और स्वछंदता  को |

अथाह  विचारो  की  मझधार  में  बहा  तो  मैं  भी  बहुत बार, अब  भी  कई  बार गोते  खा  ही  जाता  हूँ |
अपने तरीकों से तैर  कर  पार  जाने  की  कोशिश  करने  पर  उबर   भी  जाता  हूँ  इस गहराई  से |  पर  वो  मुश्किल  बहुत  है और फलस्वरूप जो सुकून मिलता है वो इन सारे प्रयासों का उचित प्रतिफल है |

अब काश कोई  नैया  मिल  जाये ....जो  बिना  खुद  तूफ़ान  से  डरे , बिना बहाव  में  बहे ...मुझे  भी बहने से रोक ले और पार  जाना  सिखाये ....मुझे  खुद  पर  जीत  दिलाये ....

शायद  तभी  जीत  जाऊंगा  मैं  अपने  आप  से  और बच निकलूंगा अनंत विषैले विचारो के शाप से .....  

Thursday, March 31, 2011

कप इस बार हमारा है...

बिना  शूल  के  पथ  ऊंची  मंजिलों  की  और  नही  जाते  यारों ......

बिना  क़त्ल  के  जूनून  और  रक्त  की  प्यास  के  मैदान  - ए  - जंग  नही  जीता  जाता .....

जब  नींद  नही, खून  उतरता  है  आँखों  में, जलजला  उठता है  जज्बातों  में ....

फिर  जान  जाये  या  जहां  जाये, हमें  शान - ए - हिन्दुस्तान  के  सिवा  कुछ  और  नज़र  नही  आता .....

जब  श्रीलंकाई शेरो  से  सामना  होगा, बराबर  के  वार  होंगे ....तभी  जी  भर  के  खायेंगे  अब ...

तभी  आएगा  मज़ा  लबों  पे  लहू  मलने  का, क्यों की  अब  हिन्दुस्तानी  चीतों  को  मुफ्त  का  गोशत  नही  भाता ....

Monday, March 28, 2011

तू बुझदिल नहीं ....जिंदादिल है यारा


अनंत  नीले  नभ  में  सितारों  को  देख  उन्हें  जेबों  में  भर  लेने  की  तमन्ना  तो  बहुत  थी  जाने  कब  से 
पर  ना  पर  थे  काबिल  उतने , ना  ही  कोई  सितारा  सज संवर  कर  मेरी  राह  ताकता  नज़र  आता  था  मुझे

एक  दिन  जाने  जादूगरी  किसने  की , खूबसूरत  और  नाजुक  पंख  मेहनतकश  हो  गये , उड़ने  लगा  मैं
ज़माने  की  छोटी  छोटी  ऊंचाइयों  का  डर  ख़त्म  करता  हुआ, उन्मुक्त  हवा  की  सवारी  करने  लगा  मैं

महसूस  होने  लगी  है  बेइंतहा  बेकरारी  उस  शून्य  में  खो  जाने  की , अभिलाषा  वो  अंतिम  डग  भरने  की
अब सामान्य  न  व्यव्हार  रहे  ना  विचार, वो  चाँद  हासिल  करना  है, जिद  है  उस धरती  पे  पग  धरने  की

जाने  कितनी  रातें  जुगनुओ सी  काटी  है  मैंने, यहाँ  पहुँच कर  अब  चांदनी  ज्यादा  हसीं  और  खुदा  मेहरबान  लगता  है
दर्द  भूल  गया  हूँ  चाँद  संग  ले  आने  की  ख़ुशी  में, मंजिल  नायाब है  इतनी,  की  हर  रास्ता  आसान  लगता  है

उड़ते  उड़ते  गिर  भी  जाऊ  तो  गम  नही, पर  पंख  फडफडाते  हुए  पडावों  पे  अब  रुकना  बहुत  मुश्किल  है , पर  तू  कहे  तो  नामुमकिन  वो  भी  नही
ये  उड़ान  पूरी  ना  होने  का  रंज  तो  हमेशा  रहेगा, पर  सुकून  इतना  है,  की  मैं  जख्म  के  डर  से  जोखिम   ना  लेने  वालो  सा  बुझदिल  तो नही 

मेरा गाँव


मेरा  छोटा  सा, प्यारा  सा  गाँव ...धीरे  धीरे  शहर  बन  रहा  है ...
खूबसूरत  बन ने  की  कोशिश  में  जाने  संवर  रहा  है  या  उजड़  रहा  है ...

रास्ते  लम्बे  लगते  थे  तय  करने  में ...
जब  धुल  भरी  पगडण्डी  पे  बैलगाड़ी  में  किसी  से  मिलने  अढाई  कोस  जाना  होता  था ...
पगडण्डी  का  पहनावा  बदल  गया , हमारी  सवारी  बदल  गयी ...
पर  हैरान  हूँ  दूरियों  को  देख ..वो  तो  शायद  कुछ  ज्यादा फ़ैल गयी ...

बारिश  में  छप्पर  से  टपकता  पानी ...
जब  मिटटी  के  आँगन  पे  माँ  के  बनाये  मांडनो  पे  गद्दे  करता , मैं  झल्लाता  था ...
अब  पक्के  मकान  बन  गये  हैं , पर  अब  घर  महकता  नही  कभी ...
नूतन विकास के लिए  हमने उन  बूंदों  और  मिटटी  के  मिलाप  से  बनी  खुशबु  खो  दी ...

हर  विचार  पे  मिलते  थे  अनचाहे  सुझाव ...
पहले  ढेरो  टिप्पणियाँ मिलती, फिर  विजयी  सुझाव  पे  सब  अपना  हक  जतलाते  थे ...
अब  बाहर  सभा  नही  जुडती , अब  यु  ही  शाम  नही  कटती ...
मुश्किलें  अब  भी  है , बस  अब  उतनी  आसानी  से  नही  सुलझती ...

पालतू  पशु  परेशानी  के  सबब  लगते  थे ...
झड़े  हुए  पत्ते  और  गोबर  के  बने  कंडे , हर  घर  की  मुंडेर  पे  दीखते  थे ...
अब  साफ़  रहती  है  चारदीवारी , पर  खानपान  की  शुद्दता  नही ...
गंदगी  भी  कम  हो  गयी ...पर  पदों  की  छाँव भी  न  बची  कही ...

सुस्ताती , धीमी  ज़िन्दगी  रास  नही  आती   थी ...
हर  शाम  रंगीन  चाहते  थे , हर  रात  कही  ऊँचा  उड़  जाने  के सपने  दिखाती  थी ...
दौड़ने  लगे  है  अब , शायद  थोड़े  सपने  भी  पूरे  हुए  है ...
पर  इस  एक  पल  के  लिए  हमने ..सुकून  के  कितने  पहर  खोये  है  ...

चल  रहा  है  गाँव  मेरा ..अथक , निरंतर ...पर  जाने  किस  मंजिल  की और ...
पकडे  चल  रहे  है  जो  डोर , एक  अशांत  एकाकी  गली  की  और  जा  रहा  है  उसका  दूसरा  छोर ...

Thursday, March 24, 2011

जी करता है....

बैठे  हुए  यु  ही  अचानक  कही जाने  को  उठ  खड़ा  होता  हूँ  ...
                                            तेरे  पास  चले  आने  का  जी  करता  है  ....

अपनों  के  साथ  गुजरते  लम्हों  में  से  कुछ  पल  चुराकर .....
                                           बस  तुझे  याद  करने  का  जी  करता  है ...

हंसी  ठिठोली  करते  हुए  कुछ  देर  यूं  ही  चुप  हो  जाता  हूँ  ...
                                          तुझ  संग  अकेले बतियाने  का  जी  करता  है  ....

होश  में  रहने  में  अब  मज़ा  कहाँ  - तुझ  में  ही  खोया  रहता  हूँ ...
                                          तेरे  इंतज़ार  में  पलके  बिछाने  का  जी  करता  है  ....

तेरी  और  बढाता  हु  हर  कदम  और  यूं   ही  चलते जाना  है  मुझे ....
                                          जीना  है  मुझे,  पर  क्या  करूँ...तेरी  हर  अदा  पे  मरने  का  जी  करता  है  .....


नयी आरज़ू


शब्दों  के  संयोग  सजाने  की  मेरी  कला  तो  बस  बेमानी  है 
आरज़ू  है  अब  यह  के  इस  दिल  में  तेरी  एक  दिलकश  तस्वीर  बनानी  है  ...
बयां  तो  इस  बला की  खूबसूरती  को  न  कलम  कर  सकती  है  ना  केनवास  के  रंग ...
ये  तो एक नया  बहाना  है  ..तुझे  एकटक  निहारने  का ...घंटो  बैठ  जाने  का  तेरे  संग ...

Friday, March 11, 2011

जाल क्यों बुन लूं खुद ही ?

शायद  मुझे  नही  पता  - प्यार , ज़िन्दगी , कर्तव्य , सफलता  के  मायने  क्या  है 
चंद  होठों  पे  मुस्कान  सजाये  रखने  का  बस  खुद  से  वादा  किया  है  ...
कुछ  लड़खड़ाते  कदमो  का  सहारा  बन ने  की  कोशिश  है ...
कुछ  आँखों  के सपने  पूरे  करने  की  ख्वाहिश  है ..

अब गिले  शिकवे  मिटाने है , शिकायतें  नही  करनी ...
भरोसा  करना  है  खुद  पे , झूठी  उम्मीदें  नही  करनी ...

मैं  शब्दों  के  व्यर्थ  अर्थों  में  उलझना  नही  चाहता ...
रिश्तों  को  तवज्जो  देना  सीखा  है , बस  उन्हें  नाम  देना  नही  आता ..
प्यार  और  जीवन  पे  चंद विशेषज्ञों  की  टिप्पणियाँ  अब  सुनना  नही  चाहता ...
चुन  लिए  चंद  धागे  मैंने  रिश्तों  के , उनसे  जाल  अपने  लिए  बुनना  नही  चाहता ...

ओ मुसाफिर... For Pritam

ओ  मुसाफिर ...तेरी  जिंदादिली  का  कायल  हूँ  मैं 
बहता  जा  यूं  ही
पर्वतों  को  चीरता
खिलखिलाते  हुए ...

मुस्कुराता  जा  मुसीबतों  में ...
धुप  में  चमचमाती  ओस  की  तरह
छु  ले  आसमा
हवा  के  पंखो  पे  बैठ  लहराते  हुए ...

जीता  जा  यूं  ही ...
अथक ..चलता  जा ...
एक  दिन  तेरी  मंजिल  पे  पहुँच  ...
बैठ  के .. बहुत सी  बातें  करेंगे ...

याद  रखना  उस  पल  तक ....
मेरी  हर  महफ़िल  में
एक  जाम  और  मेरे  दिल  का एक  कोना  ...
हमेशा  तेरी  राह  ताका  करेंगे ...

Monday, February 21, 2011

कौन है तू

कौन  है  तू ? जो  खोता  नही , खोने  देता  नही - गर  मैं  रास्तों  से  भटक  भी  जाऊ 
उदास  होने  नही  देता  मुझे , पलकें भी बंद  नही  करता - गर  मैं  सो  ना पाऊं

राहें  मंजिल  लगती  है  जब  तू  हो  साथ , जब  बैठे  होते  है  पीठ  सताये  हम  चुप  चाप ...
लहरों  पे  अठखेलियाँ  करूं  या  डूबती  हो  नाव  मझधार  में , पकडे  होता  है  तू  ही  हाथ ..

रूठ  जाऊं  अगर  तुझसे , टूट  जाते  है  सपने , बिखरा  नज़र  आता  है  आइनों  में  अक्स  मुझे ...
भरे  जाम , सुहानी  शाम , प्यारे  पैगाम और मेरे  कलाम , सब  पुकारते रहते  है  बस  तुझे ..

सताता  है , रुलाता  है  बेतुकी  बातें  करके , फिर  पलकों  से  आंसू  गिरने  भी  नही  देता ...
पंख  लगाये  मन  बावरे  को  तुने  ही , पर  ये  खुदा  हमे  संग  उड़ने भी  नही  देता ...

ख़ुशी  में - गम  में, खुदी  में - बेखुदी  में, इस तनहा  भीड़  में कैसे  जीना  है  सब  तुने  ही  बताया ...
तेरे  संग  संग  हंस  के  जीना  सीखा मैंने ...बस  अब  तलक  मुझे  तेरे  बगैर  रहना  न  आया ...

Monday, February 7, 2011

I will never die "in" you..only if u will "live the life" with me.....

Yesterday i was lying still on the green bed in a rainy evening ....
trying hard to be happy....but the tears were keen to mix wid the raindrops...

Don't know why !

I wish to enjoy this natural beauty forever,....to nurture it...
Want to love, create a so-so network to be with...not asking for the best...
To say ...whatever is stored in the dark silent depth of heart...

bt suddenly the charm vanished by the thought of exit....

loosing all ur loved ones, letting go the objects of affection away....
forgetting the art of living, not being the part of anyone's living...

the thought in itself is killing.....but someday it will happen....yes ..it will...

Someone say it as nature's cycle, some says the curse or the boon ...
Whatever u say..it's the unbeaten rule that is wrapped around with this gift "life"......

I cann't complain....won't argue...but yes ...
have some plans....some ambitions...some memories i want to leave in ur mind and heart after me ....

Let me Enjoy......Create the joy...have fun...Be with me, create memories.....
make stupid mistakes...love yourself, love everyone and laugh a lot...

Don't worry..Don't push me... more you force, faster the water will slip through ....
No body can help ....No one can change this...and this time ....no one can stop...

O dear God, O dearest World....Let me forget the bad part and enjoy every moment...
I need your support, ur love, the energy, passion n power to smile forever....but not a false hope...

Wednesday, February 2, 2011

"थोडा और"

ताउम्र  गिने  मैंने  अनगिनत कदम  मेरे, किन्तु हर  बार  तय  करने  को  एक  लम्बी  दूरी  बची  रही ......
सपने  जिस  जिस  दिन  पूरे  हुए, उस  उस  रात  नए  सपनों  की  तलाश  में  बोझिल  आँखें  खुली  रही ...

पिसता  रहा  हर  पल  ख़ुशी  की  आरज़ू  में, जब  मिली  भी  तो  नयी  उम्मीदों  के  बोझ  तले  दबी  हुई ...
चाहा  जिन  अपनों  को, वो  तो  हैं  दूर  कहीं, मेरे  हिस्से  आई  बस  चंद तस्वीरें मेज़  पे  सजी  हुई ....

दूसरों  की  ख़ुशी  से  मोहब्बत  की  मैंने  बेपनाह, पर  मेरी  हर  मंजिल, हर  डगर  बेवफा  निकली ....
ज़रा  अपनी  ज़िन्दगी  को  कुछ  लम्हे  दे  दूं अब, वो  कोसती  है, पूछती  है  उसे  किस  गुनाह  की  सजा  मिली.

गम  कभी  खत्म नहीं  हुआ, वक़्त  रुका  नहीं , न  बदली  मन  की "थोडा  और " चाहने  की  फितरत  ....
अब  करना  है  बस  वो  जो  चाहत  है  मेरी, चाहे  ठुकरा  दे  दुनिया , चाहे  खिलाफ  हो जाये किस्मत .....

आशा है आप मेरे साथ होंगें

Monday, January 31, 2011

One to start the month of lovers :)

ये  हया  तेरी, हर  अदा  तेरी - जगाती  है  चाहतें, थोड़ी  प्यारी, थोड़ी  चंचल ...
बिखेर  देती  हैं  मोहब्बत  हर  जगह - जल  हो, हो  थल, या  हो  अम्बर  का  आँचल ....

तू  गाती  है , गुनगुनाती  है, नित  मेरे  हृदय के  प्रांगण में  इठलाती  है, बल  खाती  है ....
मदहोश  हूँ  मैं, बेसुध  हूँ , और  ये  नशा  उसी  जाम  का  है जो  तू  नज़रों  से  पिलाती  है ...

घायल  न  करो  मुझे, इन  बहती  जुल्फों  से  कह  दो ये मेरे  ख्वाबों  में  लहराना  छोड़  दे ...
चितचोर  इशारों  से  कह  दो, अब  मुझे  यूं  तडपाना, मेरे  दिल  को  बहकाना  छोड़  दे ..

अगर  मेरे  दिल  के  दहकते अंगारों  को  हवा  देती  रहेगी  यूं   ही , ये  बेबाक  निगाहें  तेरी
तो  क्यों  न  तडपेगा  दिल  तेरे  लिए , क्यों  न  बहकेगा  मन , क्यों  न  ताकेगा  राहें  तेरी ...

गर  यूं  ही  प्रेम  पुरवाइयां बहती  रही , तो  चाहत  ऐसी  भड़केगी  इस प्यासे  आँगन  में  ...
जो  बेबस  कर  देगी  तेरे  योवन  के  सावन  को  इस दहकती ज़मीन  पे  बरस  जाने  को ....

हे  नाजुक  गुलाब  की  पंखुड़ी , बिखर  जा  मुझ  पर  और  महका  दे  इस  भँवरे  का  जीवन
कब  तक  जलूँगा यूं  अकेला, बन  जा  शमा  और  तेरे  गले  लग जल  जाने  दे परवाने  को 

Wednesday, January 26, 2011

प्यार है ....

प्यार  है ....



हर  पायल  की  खनक  में ...

आशिकों  की  जिद  और सनक  में ...



इश्क  में ... दो  दिलों  के  मेल  में ...

हर  जूनून  में ...हर  खेल  में ...



हर  जीत  में ...उपहार  में  ...

फूलों  की हर एक  कतार  में  ...



बगिया  में  ...खिलते  खलिहानों  में ..

ऊँचे  पर्वतों  और  फैले  मैदानों  में ...



हंसती  नदिया  में , शांत  वादी  में ...

हर  वादे  में ...हर  शादी  में ...



विश्वास  में ...तेरे  एहसास  में ...

हर  रिश्ते  की  मिठास  में ...



माँ  के  खाने  में ...पिता  की डांट में ...

बहना  से  झड़प  में  ..हर  आशीर्वाद  में ...



हर  दुआ  में ...अभिवादन  में

हर  गीत , संगीत  और  वादन  में ..



दिवाली  की  रौनक  में ...होली  के  हुडदंगों   में ...

चाहत  भरी  ना  में ... दोस्तों  से  पंगों  में ...



प्यारी  मुस्कान  में  ...हर  नादानी  में ...

छेड़खानी  में  ...हर  शैतानी  में ...



कुड़ियों  की  ख़ूबसूरती  में ... नखरों  में ...

लड़कों   के  जोश  में ..उनकी  शरारती  अंखियों  में ...



हर  कण  में , हर  पल  में ...हर  मन  में  प्यार  है ..

बस  देख  पाने  वाली  एक  नज़र  की  दरकार  है ...

Thursday, January 20, 2011

krishan bhajan


Sun ri kanha ki maiya...araj sunane main aai...
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai...

nit nit aake Maakhan chore...
chachiya bhari sab gagariya phore...
kuch bhi kahu toh kaha na mane...
mera chain o neend churaai....

O yashoda maiya...yo udhami bado harjaai...
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai... -2

Gwal baal sang gaiyaa charave...
taan badi hi meethi sunave...
jhoome dharti aur yeh ambar..
sang vrindavan..main bhi aaj naach aayi

O yashoda maiya...wo toh madhur muraliya bajaai...
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai... -2

natkhat kanho...gopiya ne rijhave..
panghat par chede aur satave...
holi khele..bhar pichkari mare...
mhari saari chunariya bhigaai.....

O yashoda maiya ...main shyam rang rang aayi....
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai... -2

govardhan ungali pe uthayo....
kaliya k fun pe nritya dikhayo ...
kans ko vadh kiyo..khel khel me
Mathura ne mukt karaai....

O yashoda maiya...yo toh veer..dheer..sukhdayi....
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai...-2

aaya sudama jab kanha re dware...
prem vivash ho k bhgya savare...
bhakti vivash hoke cheer badhayo ...
dropdi ki laaj bachaai...

O...lalo tero ..dukhiya ko sangi saai...
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai...2

sulabh prem ki reet chalayi...
radhe sang preet ki dor bandhaai...
gopiyn k sang raas rachye...
radhe rani aur krishan kanhaai...

ye alokik jodi toh maiya...sabke man ko h bhayi...
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai...-2

mor pankh sovhe jake bhaal pe...
vinati karu main wa nandlal se...
shyam varan ..manmohan bata kyu...
tune mujhse dhari nithuraai...

O yashoda maiya...meri ankhiyan badi tarsaai...
O yashoda maiya..daras na de yo kanhaai...
mane koni tero kanhaai....mane koni tero kanhaai...
O yashoda maiya....mane koni tharo kanhaai... -2

Poem @ team party @ samsung

Manager k diye issues...Mere collegues k sujhav...
                                   A.C. ki thandi hawa aur Tech Associates k bhaav...
Wo timing ki tension...Swagath ka monotonus khana..
                                  Teammates k sath me u hi..Kaam k bich maje udana..

Yeh sab se door rehne ko dil khushi khushi hota h taiyaar...

Par wahi toh milti ho "TUM"...
                                   Deedar hota h tumhare hasin chehre ka...
Muskura lete h hum bhi zara teri hasi k sahare...
                                   Bas isi wajah se ...aur sirf isi wajah se ...

Lagta h "Yeh Weekend Kyu Aata h Yaar" .....

Likho....Kuch Bhi....jaise maine likhi....ABCD...

A apka adbhut, Anokha aks...         
B edaag aur bhola bhala...


C hand se chamakte chehre ne....
D il ka dard mujhe de dala...
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E hsaas Ekaki hone ka hota h....
F ursat aur faaslon me..

G hungroo gaate geet h jab...
H oti h hulchul hasraton me...
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I kraar e ishq k intzaar me ...
J ism o jigar jalte h mere....

K udrat khafa, khwab katraye se ...
L aachar ye lamhe lagte h...
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M uskaan me mili h madira...
N ayaab h neele naina tere nakhrale.....

O dhni Odhe jb tu...
P arde k piche ki pari pal me pagal kar dale...
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Q na khe qayamat tumhe...
R oop ki rani, rango ki rawani...rab si roohani ho tum....

S uhani sham si sharmayi, sachuchayi,         
T alhati me taal pe thirakti talaiya ho tum...
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U toh usi umda umeed se umar bhar jiyenge,
V eena si vaani k vAado k sahare...

W aqt wapas be-wajah be-wafa ho gya toh,
Y e yateem yovan katega yaado k sahare...
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Z inda rehne ka Zazba zakhzor rha h, zaalim zara toh reham kar, zokhim h ab meri zindagi ka...
Mere pyaar ko roshni baksh,kubool e ishq karwa "e khuda" unse..kuch toh sila de meri bandagi ka...

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Isse kya gila karu main....

Kis kis diwar se mitau naam tera, kitne katre karu tere khato k main ....

Ye dil ka dard har nasoor se jyada h, jism pe chahe jitne jhakhm karu main....

Pyar k bahane se jitne tukde kiye armaano k tune, badhte hi gaye ginti me wo...

Aaina bhi dhokha h ab, tere aks ko dhundhla aur bheegi si batata h meri palko ko...

Jeena nhi chata main, par nahi h mumkin....mar jana tujhse u juda hoke....

Jurrat bhi krta hu khush hone ki, maikhane k paimane mein tujhe kho k...

Ab jaam bhi Beasar ho chale, chhod dete h teri hi terah ye bhi mujhe, Bechain....Tanha sa in khoyi raho pe bhatkne ko...

ab manzoor yhi h gar sabko toh yhi shi....

Jab tujhse kuch na keh saka, tera hone k baad, zindagi bhar tere liye rone k baad, ...toh is jaam se kya gila karu main..

yeh toh tere adhro ki jhootan bhi nhi....
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