Wednesday, July 13, 2011

खुदा खो गया हो जैसे ....

भोर की आँखें बोझिल हैं, तन्हा चाँद कल रात भर न सोया हो जैसे....
शाम का आँचल भीगा है, ढलता सूरज गोद में उसकी रोया हो जैसे....
न शाखों पे पत्ते, न हवा में खुशबु, न बगियाँ के फूलों में रंगत बची हैं...
ज़र्रे ज़र्रे की मुस्कान चली गयी तेरे जाने से, इस कायनात ने खुदा अपना खोया हो जैसे ...

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