ये दरिया - ए - इश्क की गहराइयां अँधेरी बहुत हैं
ये मंजिल - ए - मोहब्बत के रास्ते भी कहाँ सुलझे हुए हैं
अब तो मीठे लफ़्ज़ों में हाल - ए - दिल कहना भी मुनासिब नहीं
जाने कौन समझ बैठे की हम उसके ख्यालों में उलझे हुए हैं
ये मंजिल - ए - मोहब्बत के रास्ते भी कहाँ सुलझे हुए हैं
अब तो मीठे लफ़्ज़ों में हाल - ए - दिल कहना भी मुनासिब नहीं
जाने कौन समझ बैठे की हम उसके ख्यालों में उलझे हुए हैं
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