Sunday, July 15, 2012

तेरा मुझसे दूर चले जाना...

इतवार की शाम की वो आहट, कमबख्त दिन का ढल जाना
तेरे क़दमों का रुख पलटकर, मुझसे दूर की ओर हो जाना 

तेरा आँखें मूँद लेना, अपनी गर्दन झुका के उदासी को छिपाना
कभी मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर, चुप बैठे होठों से लगाना

पैरों की उँगलियों से फर्श पे मेरा नाम लिखना, झूठा सा मुस्कुराना
"फिर कब मिलेंगे" ये पूछती पलकों में तेरा आंसुओं को छिपाना

कहीं रो न दो इस डर से लफ़्ज़ों को सताना, फिर मुड के चले जाना
दो कदम चल के रुकना, फिर पलटकर मेरे सीने से चिपक जाना

जुदाई के लम्हों का धीरे से पास आना, यूँ मेरे दिल का ठहर जाना
बर्दाश्त नहीं होता मुझसे अब, तेरा इस तरह मुझसे दूर चले जाना

ये वक़्त बहुत अच्छा था...


तेरा ये दोस्त, कमीना था बस दिखता भोला बच्चा था
ये दोस्ती का रिश्ता, नाजुक था फिर भी पक्का था

मीठे पलों  की गिनती उसने भले नहीं करी होगी
पर उसका साथ, जितना भी था,  एकदम  सच्चा था

मस्ती, मजाक, आंसू, दर्द, हैरत हों या फिर परेशानी
पुच्के, किस्से, हंसी, अजीब हरकतें हों या कोई शैतानी

इनकी तसवीरें नही मुमकिन, न उसके पास कोई और निशानी
बस उसका दिल है गवाह, की तेरे संग गुजरा ये वक़्त बहुत अच्छा था

Friday, July 13, 2012

मर्ज़ मिटाने की जिद


आज यूँ ही बैठे बिठाए, मेरी आँखें नम हो गयी

ख्याल जो आया कि आधी ज़िन्दगी खत्म हो गयी


दवा ढूंढ रहा हूँ जिसकी, उस मर्ज़ का तो पता नहीं

पर वो मर्ज़ मिटाने की जिद में, ये सांसें कम हो गयीं


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