Tuesday, October 26, 2010

रुतबा ऐ मोहब्बत


उस पाक हुस्न की हर तारीफ, नापाक शरारत नही होती

हर बार सनम पे हक जतला देना, कोई हिमाकत नही होती


रहता है आशिकों के दिल में मोहब्बत का रुतबा बहुत ऊँचा

गर ऐसा न होता तो ताजमहल सी बेमिसाल इमारत न बनी होती

आपके लिए

For all those who contributed in any way...in making my boring life ..."Worth Living And Worth Enjoying"

Tell u what......"I am Loving it" now a days :)



मेरी ज़िन्दगी में आपकी अहमियत

आपकी प्यारी हंसी और वो मासूमियत



आपके साथ होने पे ख़ुशी, दूरी पे गम की वजह

यह सब शब्दों में बयान करूँ भी, तो किस तरह



बस



खुद से पहले आपके लिए दुआ करने को जी चाहता है

इस साथ के लिए आपका शुक्रिया अदा करने को जी चाहता है

रिश्ते सजाओ, सामान नहीं

जज़्बात दिलों में अब भी हैं, बस पहले जैसी अब सोच नहीं
जो रिश्ते प्यारे लगते थे, अब बन बैठें हैं बोझ वही

ये दौलत, ये शोहरत, इंसान से है, इंसानियत इन से नहीं
स्वार्थ और अहंता के पाश से डरो, रिश्तों के बंधन से नहीं

दुनिया के ये साज – ओ – सामान, साधन हैं यारों, मंजिल नहीं
भावनाओं के संरक्षक बनाओ इन्हें, जीवंत रिश्तों के कातिल नहीं

मोह, मनुष्य और मानवता से करो, इन निर्जीव वस्तुओं से नही
कर्म और उद्देश्य की महानता, उसमे निहित कारण से है, तुम्हारे तरीको से नही

प्रेम के चरण..

प्यार की शुरुआत में -

उसको चाहा मैंने इतना
प्यार किया बेइंतहा, उसका हर पल यादगार बनाया
जान लुटाई उस पर अपनी
दुनिया से नाता तोडके भी उससे किया हर वादा निभाया

प्रीत भंवर के मध्य में -

वो कहाँ समझती है मेरी मोहब्बत की गहराई
जाने क्यों रहती है हर वक़्त खफा
दीवाना था जिसका, वफ़ा करना सीखा मैंने जिसके लिए
वो मेरी मोहतरमा ही निकली बेवफा

प्रेम कथा के अंत में -

लायक नहीं मेरे इश्क के वो
जिसको समझ न आई मेरी आँखों में छिपी सच्चाई
अच्छा ही हुआ जो मुझे प्यार हुआ उससे
ऐसे ही सही मुझे अपने भोले दिल और एहसासों की कद्र तो समझ आई

Saturday, October 16, 2010

सोया रहूँ...


बस सोये रहने की ललक रहती है इन दिनों

जागना उनकी याद में अब अच्छा नही लगता


इस अजीब आदत की दोस्तों, मैं वजह क्या बताऊँ


आजकल सपनो में वो साथ होते हैं मेरे

बैठे होते हैं मेरा हाथ थामे मेरे ख्वाबगाह में


तो क्यूँ न मैं अभी सो जाऊं और अपनी “ज़ारा” से मिल आऊं

Jaise paani beech batasha.....

Bhool nhi paaya main ab tak...

Aangan me bichi chharpari aur ghar ki seedhiyo par aseem anand se bhara aalhadit mann...
Kabhi pedo k beech bandhe kapde me toh kabhi thandi mitti me besudh soya mera bachpan....

Dikhai deta h mujhe aaj bhi...

Ujale me khet ki faslo me khelta aur usi ko andhere me parchaai maan kar darta hua main...
Nirbodh se mere naino me zid poori na hone pe kabhi aakrosh aur kabhi aansoo bharta hua main....

Sunai deti h mujhe ab bhi...

Wo subh lori si sunayi padti koyal ki aawaz aur loo me patto ki ghabrai si sarsaraahat...
Belgaadi ki ghantiyaan, behna ki daant aur pani bhar k lati maa k pajeb saje kadmo ki aahat...

Yaad aata h mujhe aaj talak...

Wo dosto k sath chor sipahi, gulli danda khelta ek baccha...nischal, nishkapat, muskurata hua....
Wo barish se bhi darta nanha sa tufaan, fursat me kaagaz ki naav tairaata aur hawaijahaj udata hua...

Par Dhoond nhi pata main ab...

Mere is naye aakar aur vyavhaar me, wo naadani, hatt, hairani aur abhilasha...wo masoom si zigyasa...
Nishchint hokar sone aur khush uthne ki umeed kho gyi h in zimmedariyo me aise...jaise pani beech batasha...
.......Jaise pani beech batasha.......

चाहतें अजीब हैं ...

अपनी अहमियत जतलाने को तो हर शख्स यहाँ है बेक़रार

इंसानियत का पकड़ने को दामन, लेकिन कोई नहीं तैयार


टूट के बिखरने की चाहत नही, बस फूलों सा महकने की ख्वाहिश है

अक्स पसंद नही कोयल सा, बस उस सी मीठी बोली सबकी फरमाइश है


पंख सबको चहिये, पर गवारा नही बेजुबान परिंदा होना

खूबसूरती चाँद सी मांगें, पर मंजूर नही तन्हाई में रोना


राहें उजली चहिये पर कोई चौखट पे दिया अपना रखना नही चाहता

जुगनू बन खुद रोशन हैं, औरों के लिए शमा बनके कोई जलना नही चाहता

Sunday, October 10, 2010

खुशियों का हक़दार था तू..

दर्द में भी मुस्कुराने की नायाब खूबी का खामियाजा भुगतना पड़ा तुझी को

जख्म और धोखे ही दिए नज़राने में सबने, और गिला भी तो न हुआ किसी को


तुने तो छुपाये गम जाने कितने, बांटी बेपनाह खुशियाँ जिनके बाजारों में

तेरे अनकहे बैचैन जज्बातों को समझने की अक्ल ही कहाँ थी उन समझदारों में


चुरा के नज़रें ज़माने से रोया भी होगा तू, पर वो आंसू बस दर्पण ने देखे थे

इसी बुझदिल ज़माने ने तन्हा देख तुझे, तेरे शीशमहल पे वो पत्थर फेंके थे


शिकायत फिर भी कहाँ की तुने, सहता गया ख़ामोशी से हर बेरुखी और रुसवाई

पर क्यूँ बेइंतहा खुशियों के हक़दार को ज़िन्दगी के अंत तक मिली बस “बेवफाई”

यारों...

पहले बस आसाँ जद्दोजेहद होती थी इस दिल में

जैसे की जाएँ मैखाने या हो आयें किसी महफ़िल में

आज एकाएक उलझनें बढ़ गयी यारों


इस दिल के दो टुकड़े कर वो हुस्न वाले तो चल दिए

अब ये टूटी सी हकीक़त, बिखरी सी मोहब्बत दामन में लिए हुए

जाऊं किधर अब, जब मंजिलें ही दो हो गयीं यारों

Tuesday, October 5, 2010

बिना जले तमन्ना पूरी कैसे हो !!

पागल कहता है ज़माना, हम दीवाने परवानों को

कहता है की व्यर्थ जलाते हैं खुदको यूँ इश्क की मौज में



कौन बताये इन्हें, की बिना जले दिली तमन्ना पूरी कैसे हो

हम शमा की लौ में जाते हैं, इक नयी ज़िन्दगी की ही खोज में

मर्ज़ माँगा करते हैं खुदा से..



अपनी भी जिद, मनमानी और ढेरों बेफिक्र नखरे हुआ करते थे कभी

आवारा थे हम

अपनी ख़ुशी अपनी मर्ज़ी थी, अपने इरादों संग छेड़खानी से डरते थे सभी



इन दिनों हमें नए दर्द सताने लगें हैं, नए नए ख्वाब आने लगे हैं

लगता है हम

किन्ही नर्म सुन्दर हाथों में इस बेलगाम जीवन की डोर थमाने लगें हैं



चाहता है दिल की तरीके उनके अपनाएं अब, करें कुछ ऐसा उन्हें पसंद जो हो

अब तो हम

वो मर्ज़ माँगा करते हैं खुदा से, जिसकी दवा वो करें या फिर इलाज़ ही खुद वो हो

कैसे कह दूं मैं चाँद मेरे महबूब को ?

कैसे कह दूं मैं चाँद मेरे महबूब को ?
उसे किसी सूरज की जरुरत नही, अपने दामन को रोशन करने के लिए
न ही उसके दूर जाने पे मेरे जीवन में उजियारा होता है ||

वो तो इक प्यारा सा जुगनू है
जिसके अक्स की रौशनी, मेरे दिल के अँधेरे को चीर देती है
पर ज्यूँ ही ओझल होता है वो नज़रों से मेरी, समां फिर बदल जाता है ||

दूर अँधेरे में बस इक आभास सा होता है
उस अनमोल अद्भुत जुगनू के चमकते रहने का, उसकी यादों के बहाने
और चंद पलों पहले सुकून बिखेरती रात भी, लगती है मुझे डराने ||

वादा क्या करूँ

चाँद तोड़ लाने का वादा मैं कैसे करूँ तुझसे

इक ज़मी पे दो चाँद इस कुदरत को मंज़ूर कहाँ

इन आसमान के तारों से तेरे दामन को क्या सजाऊं

जो बढ़ा सके तेरी रौनक, इन तारों में वो नूर कहाँ


तुझे सारे जहानों का सरताज बना देने की चाहत तो है

पर खुद खुदा को बेतख्त कर दूं, इतनी मेरी औकात नहीं

सपनों सा सुसज्जित तेरा एक महल बनवाने की हसरत भी है

पर पत्थर इस दुनिया में, मेरे जज्बातों की वो बिसात नहीं


हर राह तेरी फूलों से सजी हो यही कोशिश रहेगी हमेशा

पर शायद उनमे फिर भी, कुछ कांटे होंगे, कुछ कलियाँ होंगी

जब भी तेरे नाजुक कदम पड़ेंगे उस शूलों भरी सड़क पे

ये वादा है मेरा, तेरे पैरों के नीचे मेरी हथेलियाँ होंगी

आम आदमी

पथराई आँखें, कांपते अंग,
        सहमी सी आवाज़, निर्बल शरीर...

अस्थियों के ढांचे को ढकता,
        चिरकाल पहले तार तार हो चूका चीर..

तपती धुप और कड़ाके की ठण्ड से
        जूझ कर मर जाना इनकी तकदीर...

भूख मिटाने को है बस झूठन
        पीने को बस आँखों से बहता नीर..

वादे किये जाते सावन के जिससे हर बार
        पर छाँव के लिए दिए जाते सूखे नीड़...

सियासत और रियासत की जंग में बेवजह
       ख़त्म होती निरीह, बदकिस्मत प्यादों की भीड़....

छल होता सपनो से इनके नए नए बहानो से
       जाली चेहरे दिखा कर हर बार ये लुटे जाते हैं....
   
ये "आम आदमी" है, तस्वीर नहीं बदलती इसकी कभी
        यहाँ कभी केनवास तो कभी चित्रकार बदले जाते है...

हैरान हैं सब...


हैरान हैं सब, कैसे मैं चहकता हूँ दिन भर

                   क्या वजह है मेरे हर वक़्त मुस्कुराने की...

मैं तो बस बड़ी शिद्दत से जीता हूँ हर लम्हा ...

                  की यह भी गुजरे तो नजदीक आये घडी तुझसे मिल पाने की....


निशाँ चंद पैरों के....


शिकायत है दोस्तों की, हम भूल गये उन्हें

इतने दूर हो गये हैं की अब लगने लगे है गैरों से....

यारों, बदली हैं शायद मज़िलें, बदले हैं चंद रास्ते 

पर जहाँ जाता हूँ पीछा करते हैं निशाँ चंद पैरों के....

It's not normal....

Feelings normally fade away ...as the time passes...but these are getting sweeter...

Normally your own choice ... seems best but now someone else's choices seem much better..

Normally u start hating when u assume someone bad for you...but i became the lover...

what should i do...She looks much beautiful with each passing day...and i can't even say it to her...

सुकून ...पर क्यूँ ?


क्यूँ सुकून ढूँढ़ते हो यारों...दिल बैचैन न रहा तो साँसों का कारवां न रुक जायेगा ?

बिना लहरों से उलझे, तूफ़ान से जूझे...साहिल पे पहुच भी गये तो क्या मज़ा आएगा ...                                                                            

गर पता हो की मरेंगे नही ...तो  क्या जिंदा रहने का जूनून खत्म न हो जायेगा

और मर गए यूँ ही "आम" इंसानों की तरह....तो बताओ कौन...हमें याद रख पायेगा...

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