Tuesday, October 5, 2010

कैसे कह दूं मैं चाँद मेरे महबूब को ?

कैसे कह दूं मैं चाँद मेरे महबूब को ?
उसे किसी सूरज की जरुरत नही, अपने दामन को रोशन करने के लिए
न ही उसके दूर जाने पे मेरे जीवन में उजियारा होता है ||

वो तो इक प्यारा सा जुगनू है
जिसके अक्स की रौशनी, मेरे दिल के अँधेरे को चीर देती है
पर ज्यूँ ही ओझल होता है वो नज़रों से मेरी, समां फिर बदल जाता है ||

दूर अँधेरे में बस इक आभास सा होता है
उस अनमोल अद्भुत जुगनू के चमकते रहने का, उसकी यादों के बहाने
और चंद पलों पहले सुकून बिखेरती रात भी, लगती है मुझे डराने ||

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