Saturday, October 16, 2010

सोया रहूँ...


बस सोये रहने की ललक रहती है इन दिनों

जागना उनकी याद में अब अच्छा नही लगता


इस अजीब आदत की दोस्तों, मैं वजह क्या बताऊँ


आजकल सपनो में वो साथ होते हैं मेरे

बैठे होते हैं मेरा हाथ थामे मेरे ख्वाबगाह में


तो क्यूँ न मैं अभी सो जाऊं और अपनी “ज़ारा” से मिल आऊं

2 comments:

  1. is shayari me to nazarein sirf "zara" par hi tham gayi.. aap kya "veer" hain :P

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  2. Haan....meri "zara" ka "veer" to hu hi main ... :P

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