चाँद तोड़ लाने का वादा मैं कैसे करूँ तुझसे
इक ज़मी पे दो चाँद इस कुदरत को मंज़ूर कहाँ
इन आसमान के तारों से तेरे दामन को क्या सजाऊं
जो बढ़ा सके तेरी रौनक, इन तारों में वो नूर कहाँ
तुझे सारे जहानों का सरताज बना देने की चाहत तो है
पर खुद खुदा को बेतख्त कर दूं, इतनी मेरी औकात नहीं
सपनों सा सुसज्जित तेरा एक महल बनवाने की हसरत भी है
पर पत्थर इस दुनिया में, मेरे जज्बातों की वो बिसात नहीं
हर राह तेरी फूलों से सजी हो यही कोशिश रहेगी हमेशा
पर शायद उनमे फिर भी, कुछ कांटे होंगे, कुछ कलियाँ होंगी
जब भी तेरे नाजुक कदम पड़ेंगे उस शूलों भरी सड़क पे
ये वादा है मेरा, तेरे पैरों के नीचे मेरी हथेलियाँ होंगी
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