अपनी भी जिद, मनमानी और ढेरों बेफिक्र नखरे हुआ करते थे कभी
आवारा थे हम
अपनी ख़ुशी अपनी मर्ज़ी थी, अपने इरादों संग छेड़खानी से डरते थे सभी
इन दिनों हमें नए दर्द सताने लगें हैं, नए नए ख्वाब आने लगे हैं
लगता है हम
किन्ही नर्म सुन्दर हाथों में इस बेलगाम जीवन की डोर थमाने लगें हैं
चाहता है दिल की तरीके उनके अपनाएं अब, करें कुछ ऐसा उन्हें पसंद जो हो
अब तो हम
वो मर्ज़ माँगा करते हैं खुदा से, जिसकी दवा वो करें या फिर इलाज़ ही खुद वो हो
dard hi khud h khud dawa h ishq hi...
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