Tuesday, October 26, 2010

रुतबा ऐ मोहब्बत


उस पाक हुस्न की हर तारीफ, नापाक शरारत नही होती

हर बार सनम पे हक जतला देना, कोई हिमाकत नही होती


रहता है आशिकों के दिल में मोहब्बत का रुतबा बहुत ऊँचा

गर ऐसा न होता तो ताजमहल सी बेमिसाल इमारत न बनी होती

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