Sunday, October 10, 2010

खुशियों का हक़दार था तू..

दर्द में भी मुस्कुराने की नायाब खूबी का खामियाजा भुगतना पड़ा तुझी को

जख्म और धोखे ही दिए नज़राने में सबने, और गिला भी तो न हुआ किसी को


तुने तो छुपाये गम जाने कितने, बांटी बेपनाह खुशियाँ जिनके बाजारों में

तेरे अनकहे बैचैन जज्बातों को समझने की अक्ल ही कहाँ थी उन समझदारों में


चुरा के नज़रें ज़माने से रोया भी होगा तू, पर वो आंसू बस दर्पण ने देखे थे

इसी बुझदिल ज़माने ने तन्हा देख तुझे, तेरे शीशमहल पे वो पत्थर फेंके थे


शिकायत फिर भी कहाँ की तुने, सहता गया ख़ामोशी से हर बेरुखी और रुसवाई

पर क्यूँ बेइंतहा खुशियों के हक़दार को ज़िन्दगी के अंत तक मिली बस “बेवफाई”

4 comments:

  1. kya ho gya bhai? tujhe mene kaha tha ki keh de piche mat hat sab k kehne se pr tu mana nhi..

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  2. Ishq me buri niyat se kuch kiya nahi jata..
    Kaha jata h use bewafaa, samjha nhi jata...

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  3. @ adie : Dosto ka kaha maanke kiska bhala hua h...aur na maan k bhi kisne kuch kar dikhaya :P

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