बस खफा होने का तजुर्बा था मुझे, अब मिन्नतें करके मनाना सीख रहा हूँ
छुपाये रखे थे राज़ - ऐ - दिल जो मैंने, उन्हें किसी को बताना सीख रहा हूँ
लफ़्ज़ों को पिरो के किसी गीत में, उनसे इजहार करने का बहाना सीख रहा हूँ
जिनके क़दमों से महका है गुलशन मेरा, मैं उनकी राहें सजाना सीख रहा हूँ
नींदें चुराता था कभी मैं , अब अपना ही चैन खोना सीख रहा हूँ
बचा के रखा था ये मासूम दिल अब तलक, अब किसी का होना सीख रहा हूँ
खुश रहा करता हूँ ख्वाबों से जिनके, उनकी जुदाई में रोना सीख रहा हूँ
जो नूर बरसता है नज़रों से उनकी, उस प्यार में दामन भिगोना सीख रहा हूँ
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