रिश्तों की जमा पूँजी को किश्तों में बेच बेच कर
जो स्वर्ण समेटा है
जो स्वांग लपेटा है
अब आंसुओं में धुल रहा है
यही सफलताओं का ढेर
बर्फ की रंगहीन तंग कैद में बदल रहा है
मेरे सिमटे घुटनों की जकड़न के बीच
सर भी तो छुपाया नही जाता अब मुझसे
रक्त का जोश पथरा गया है
जहाँ तहां रुका बैठा ये भी समय व्यतीत कर रहा है बस
नीली पड़ चुकी रक्त्जाल की रक्षक ज़मीन
एक विष प्रवाहिनी प्रतीत होती है
दिल खौफ में भी है और शायद इसीलिए चुप भी
सहमी सांसें भी
रुक रुक कर
छुप छुप कर
चुप चुप सी रोती है
कभी रात के शौक से अंधियारी लगती है गलियाँ
और कभी सुख के सूरज की चकाचौंध में दृष्टि टूट जाती है
इन बर्फ की उजली दीवारों में अँधेरा भी दिखाई देने लगा है
और बस अँधेरा ही नज़र आता है
इस प्राणहीन कटघरे में पड़ा बस तेरा इन्साफ देखने को
रुका है ये राहगीर ओ मौला
कुछ कर पिघलाने को ये बेड़ियाँ
बहुत लम्बी हो चुकी ये सर्द यात्रा मेरे जीवन की
या तो पथ पे खड़ा हो जा चिराग लेकर
या मेरा इसी मंजिल से ये आखरी सलाम स्वीकार कर
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