क्या कम बंदिशें हैं ज़माने की, तेरे लिए या मेरे लिए,
इन तंग दिलों की गलियों से गुजरते डर लगता है
इस बोझिल सोच के संग उड़के थक जाता हूँ जब जब
सो पाऊँ जहाँ तेरी गोद में वो हर कोना एक घर लगता है
एक अमृत अंश जो होश बक्श्ता है बेचैन रूहों को
वो जाम -ए - मोहब्बत इन्हें जाने क्यों ज़हर लगता है
सजाऊं कैसे ओ सजनी, महल तेरे सपनों का इस मिटटी पे,
तू है मेरी अपनी, पर मुझे पराया तेरा अपना शहर लगता है
इन तंग दिलों की गलियों से गुजरते डर लगता है
इस बोझिल सोच के संग उड़के थक जाता हूँ जब जब
सो पाऊँ जहाँ तेरी गोद में वो हर कोना एक घर लगता है
एक अमृत अंश जो होश बक्श्ता है बेचैन रूहों को
वो जाम -ए - मोहब्बत इन्हें जाने क्यों ज़हर लगता है
सजाऊं कैसे ओ सजनी, महल तेरे सपनों का इस मिटटी पे,
तू है मेरी अपनी, पर मुझे पराया तेरा अपना शहर लगता है
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