Wednesday, November 16, 2011

आ.... चलतें हैं कहीं... दूर....


आ.... चलतें हैं कहीं...

कहीं दूर....बहुत दूर...


बिन तय करे ....मंजिलों की सूरत...

किन्ही अनजान गलियों के मेहमान बनके...

यूँ ही... नंगे पाँव निकल पड़ें...मुस्कुराते हुए...


सीने से लगाये एक दूजे की बंद पलकें..

लेटे रहे घंटों खुले आसमान के नीचे...

हाथों में हाथ फंसाए, चांदनी से नहाते हुए...


रात भर वादियों में ही कहीं, बैठें हों..

जलती लकड़ियों के दोनों और...खामोश...

आँखों से एक दूजे की सांसें सुनते हुए...


हुस्न निहारने की कोशिशें...चलती रहें

रौशनी में बेबस बाहें...खुद ही खुद जलती रहें

फिर रात बीते, बर्फ की झूठी बूंदे चुनते हुए ...


ठंडी रेत ओढें हम, और कभी गुलाब की पंखुड़ियां..

झील के बीच ठहरी नाव से सितारों को निहारें...

बाहों में सिमटे, धडकनों से लिपटे...सोये रहें बेहोश हुए...


जी लें हर एक एहसास...दिल को थोडा बीमार कर लें...

दो पंछी बन उड़ चलें इंसानी ऊँचाइयों से परे...

उड़ते रहे, आवारा परिंदों से, बस दिल की सुनते हुए...


आ .... उड़ चलते हैं एक नए छोर की और...

आ ...उड़ चलते हैं कहीं दूर...बहुत दूर....


..........Dedicated to someone really special (May be..Yet to be Met)

2 comments:

  1. उड़ चलते हैं कहीं दूर...बहुत दूर.... kisko le ja rha hai apne sath?

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  2. @aditya : I hope now you got the answer :D

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