सोया रहता था बेसुध हर घडी
रात भर जगाएं रखें मुझें जो
इन आँखों में वो हंसीं ख्वाब न थे
पिरोया करता था शब्द पहले भी मैं
पर वो कभी ग़ज़ल न बन सके
क्यूंकि तब उन ख्यालों में आप न थे
रात भर जगाएं रखें मुझें जो
इन आँखों में वो हंसीं ख्वाब न थे
पिरोया करता था शब्द पहले भी मैं
पर वो कभी ग़ज़ल न बन सके
क्यूंकि तब उन ख्यालों में आप न थे
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