मेरे "दो शब्दों" के "तुम" दो जवाब,
हर मुद्दे पे तुम्हारे विचार भी "दो"!!
हर सल्तनत के क्यूँ "सौ" नवाब ?
एक दुनिया में संसार क्यूँ "दो" ?
"दो कदम" भर साथ तो "सौ" कदम चलें
दोराहों पे भी कोई किसीका साथ तो दो |
"दो दो हाथ" तो करते तत्परता से सब
किसी डूबते को भी कोई एक हाथ तो दो |
दिन में जिनके चापलूस रहे "दो" होंठ
रात भर उन्ही पे बरसे गाली "सौ"!!
सर झुका न कभी इबादत में जिनकी,
उनके लिए भी कभी,एक हाथ से ताली "दो"!!
"सौ" बरस के रिश्ते यहाँ "दो" पल बस चलते
कहीं "दो" अंखियों के दीवाने "सौ" !!
"दो दिन की चांदनी" है कहीं यारों की यारी
"दो" दिलों का "लहू बहाने" के बहाने "सौ" !!
हो चुके "सौ" टुकड़े हर हंसीं मंज़र के अब
इन तन्हा खंडहरों को एक वीराना तो जीने दो |
बहा चुके जल, जला चुके जीवन जब सारा
अब अपनी जिंदा लाशों को बेरंग रक्त तो पीने दो |
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