दीवानगी में हमने प्यार घरोंदे बनाये बहुत
पर उन हुस्न वालों की बेरुखी को हम क्या बयान करें
मोहब्बत से सजाये महलों को यूँ ही बहा के ले गयी
जिनकी बेबाक लहर सी मचलती वो बेदर्द नीली नज़रें
पर
हमारी दिल्लगी का भी एक करिश्मा तो देखिये ए हुज़ूर
उसी बिखरी रेत के कण लहरों तले से मोती बन उभर आते हैं
फिर उन्ही मोहतरमा के पत्थर दिल जीतके, उनके सीने से लगे
उन्ही बेवफा के गुरुर – ओ – हुस्न में चार चाँद लगाते हैं
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