Saturday, December 4, 2010

दिल्लगी का करिश्मा


दीवानगी में हमने प्यार घरोंदे बनाये बहुत

पर उन हुस्न वालों की बेरुखी को हम क्या बयान करें

मोहब्बत से सजाये महलों को यूँ ही बहा के ले गयी

जिनकी बेबाक लहर सी मचलती वो बेदर्द नीली नज़रें


पर


हमारी दिल्लगी का भी एक करिश्मा तो देखिये ए हुज़ूर

उसी बिखरी रेत के कण लहरों तले से मोती बन उभर आते हैं

फिर उन्ही मोहतरमा के पत्थर दिल जीतके, उनके सीने से लगे

उन्ही बेवफा के गुरुर – ओ – हुस्न में चार चाँद लगाते हैं

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